भारत की कहानी | Bharat Ki Kahani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.73 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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द्वीप-समूहो में जाकर वस गये । प्राचीन भारतीय सस्कृति के ये प्रचारक निस्सत्देहू
साहसी नाविक थे । ये सम्भवत कारोमडल के पूर्वी किनारे से, यानी प्राचीन
क्लिंग, प्राचीन तेलगाना, और खासकर कृष्णा और गोदावरी के दहाने से अपने
वडे-वडे जहाजों में बैठ कर सुद्ुर-पूर्व की ओर रवाना हुये होगे । दक्षिण-पुर्वे-एदिया
में भारतवासियो के जो 5पनिवेश वने, वे छे थे । सस्कत ग्रन्थों में उन्हें-“यवदेद',
'चम्पा', 'कम्बुज', 'सायम', “रमनय' और 'मलय' के नाम से पुकारा जाता है ।
“यव' हित्दचीन का, उत्तरी भाग था । “वम्पा' वर्तमान अनाम था । कम्बुज' में
वर्तमान कम्चोडिया तथा पूर्वी सायम का कुछ भाग शामिल था । सायम वर्तमान
दयाम के उत्तरी भाग का नाम था । 'रमनय' में वर्तमान पेगु और वरमा का कुच्छ
भाग शामिल था । मलय की स्थिति वर्तमान मलाया की तरह थी ।
इन भारतीय उपनिवेंशों का इतिहास लगभग डेढ हज़ार वर्षों या उससे भी
अधिक का है । यह ईसा की पहली झताव्दी से शुरू हो कर पन््द्रहवी शताब्दी तक
'चलता है । प्रवासी भारतीय जव सब से पहले इस द्वीप-समूह के किनारो पर जाकर ._
वसे तो उस क्षेत्र का नाम उन्होंने 'सुवर्ण' भूमि रखा । उन्होने मूल निवासियों
को नये ज्ञान-विज्ञान, नये कला-कौशल और धर्म और सस्कृति के नथे-नये
विचारों का ज्ञान कराया । धीरे-घीरे भारत के सभी मत वौद्ध, दबैव, वैष्णव
और तत्रवाद इन उपनिवेशो में पहुंचे । वुद्ध, शिव, चतुर्भुजी विष्ण, गणेण, कारति-
केय और दुर्गा की पूजा के लिये मत्दिर वने । ईसा की चौथी पाचवी छाताब्दी
तक पाडुरगम, अमरावत्ती और कम्वोज नामक वडे-वडे नगर वस गये । इन्ही
नगरो में राजवण कायम हुये जिन्होंने अपने साम्त्राज्य फैलाये । इनमें सब से बडा
राज्य शेलेन्द्र-साम्भाज्य था । इसी को “श्री विजय' का सास्प्राज्य कहते हें । भैलेन्द्र-
साम्राज्य के अन्तर्गत भलय, लका, सुमात्रा, जावा का कुछ भाग, वोनियो,
सेलेवी, फिलिप्पाइन, फारमूसा का कुछ भाग और शायद कम्बोज और चम्पा
भी थे । गेलैन्द्र-साम्राज्य बौद्ध-साम्राज्य था ।
गैलेन्द्रसाम्राज्य जब विखरा तो सत्ता कई शक्तिशाली राजवशों के हाथों
में आई । कम्वोज के सस्कृत थिलालेखो से पता चलता है कि, सातवी सदी के अन्त
में बेद-वेदागों में पारगत अगस्त्य नामक एक ब्राह्मण भारत से कम्वोज आया ।
यणोमती नामक एक राजकन्या से उसका विवाह हुआ । मातूकुछ के उत्तराधिकार
के नियमों के अनुसार उनकी सन्तान “नरेन्द्र वर्मन' उपाधि घारण कर राजगह्दी
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