भारत के स्त्री रत्न भाग 5 (दक्ष कथा सती) | Bharat Ke Stri Ratna Part -iv (daksh Katha Sati)

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Bharat Ke Stri Ratna Part -iv (daksh Katha Sati) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ३ 3 चुम्दारी ओोर 'झाक्षित हों; क्योंकि, अक्सर धोखा होता है, छौर कितनों दी के मन में बिना कारण ही चहम पेदा होजाता दे है... ' '. ! ५: पति जब उचित -बात करने को ,कद्दे तो, उसका विरोध नहीं करना । ६. छापने नेददर में झधिक समय तक न रहना । ७, गूदस्थी सम्बन्धी, बातों में पढ़ोसी की सलाद न मानना, और झपने नेहर वालों की सलाद पर काम करने का अधिक 'झाम्रद भी न करना, बल्कि खुद विचार करना और अपने स्वामी से परामरश करना । ८. झपने स्वामी को कभी बुरा मला न कदना। कभी 'छावेश में छाकर भी छापने पति के सम्बन्ध सें बुरे, विचार यदि तुम प्रगट क्रोगी तो दूसरे लोग ' उससे लाभ दठायेंगे 'और उसीसे तुम्दारे पति के चरित्र का और शक्तियों का झनुमान करेंगे । ९. हुँसना, सब बातों का ध्यान ' रखना ।' जब तुम्दारा पति परेशान हो, थका हुआ दो, तो तुम्दारी मधघुर हँसी ही उसका इलाज है । तुम अपने पति की भावनाओं का यदि ख्याल रक्‍्खरोगी तो बद्द भी तुम्ददारी भावनाओं का संस्मान 'करेगा। , , , , '. १० 'अपने, ख्रीत्व को कभी न भूलना। पुरुषों को जो तुम समसका कर मनाओोगी तो वदद इसमें झपना अपमान नल सममेंगे किन्तु यदि इन्हें दबाधोगी तो वह लुम्दारा सामनां करेंगे । 'और जो तुम स्री-जनोचित विनय .'और ,सहदन-शीलता से उनके साथ व्यवद्दार करोगी तो दुबेल स्वभाव ' ोने पर भी उसका सद्धाव जाणूत दोगा श्र तुम उसे 'अंकुश में रख सकोगी ।




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