भारत की कहानी | Bharat Ki Kahani

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Bharat Ki Kahani by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ द्वीप-समूहो में जाकर वस गये । प्राचीन भारतीय सस्कृति के ये प्रचारक निस्सत्देहू साहसी नाविक थे । ये सम्भवत कारोमडल के पूर्वी किनारे से, यानी प्राचीन क्लिंग, प्राचीन तेलगाना, और खासकर कृष्णा और गोदावरी के दहाने से अपने वडे-वडे जहाजों में बैठ कर सुद्ुर-पूर्व की ओर रवाना हुये होगे । दक्षिण-पुर्वे-एदिया में भारतवासियो के जो 5पनिवेश वने, वे छे थे । सस्कत ग्रन्थों में उन्हें-“यवदेद', 'चम्पा', 'कम्बुज', 'सायम', “रमनय' और 'मलय' के नाम से पुकारा जाता है । “यव' हित्दचीन का, उत्तरी भाग था । “वम्पा' वर्तमान अनाम था । कम्बुज' में वर्तमान कम्चोडिया तथा पूर्वी सायम का कुछ भाग शामिल था । सायम वर्तमान दयाम के उत्तरी भाग का नाम था । 'रमनय' में वर्तमान पेगु और वरमा का कुच्छ भाग शामिल था । मलय की स्थिति वर्तमान मलाया की तरह थी । इन भारतीय उपनिवेंशों का इतिहास लगभग डेढ हज़ार वर्षों या उससे भी अधिक का है । यह ईसा की पहली झताव्दी से शुरू हो कर पन्‍्द्रहवी शताब्दी तक 'चलता है । प्रवासी भारतीय जव सब से पहले इस द्वीप-समूह के किनारो पर जाकर ._ वसे तो उस क्षेत्र का नाम उन्होंने 'सुवर्ण' भूमि रखा । उन्होने मूल निवासियों को नये ज्ञान-विज्ञान, नये कला-कौशल और धर्म और सस्कृति के नथे-नये विचारों का ज्ञान कराया । धीरे-घीरे भारत के सभी मत वौद्ध, दबैव, वैष्णव और तत्रवाद इन उपनिवेशो में पहुंचे । वुद्ध, शिव, चतुर्भुजी विष्ण, गणेण, कारति- केय और दुर्गा की पूजा के लिये मत्दिर वने । ईसा की चौथी पाचवी छाताब्दी तक पाडुरगम, अमरावत्ती और कम्वोज नामक वडे-वडे नगर वस गये । इन्ही नगरो में राजवण कायम हुये जिन्होंने अपने साम्त्राज्य फैलाये । इनमें सब से बडा राज्य शेलेन्द्र-साम्भाज्य था । इसी को “श्री विजय' का सास्प्राज्य कहते हें । भैलेन्द्र- साम्राज्य के अन्तर्गत भलय, लका, सुमात्रा, जावा का कुछ भाग, वोनियो, सेलेवी, फिलिप्पाइन, फारमूसा का कुछ भाग और शायद कम्बोज और चम्पा भी थे । गेलैन्द्र-साम्राज्य बौद्ध-साम्राज्य था । गैलेन्द्रसाम्राज्य जब विखरा तो सत्ता कई शक्तिशाली राजवशों के हाथों में आई । कम्वोज के सस्कृत थिलालेखो से पता चलता है कि, सातवी सदी के अन्त में बेद-वेदागों में पारगत अगस्त्य नामक एक ब्राह्मण भारत से कम्वोज आया । यणोमती नामक एक राजकन्या से उसका विवाह हुआ । मातूकुछ के उत्तराधिकार के नियमों के अनुसार उनकी सन्तान “नरेन्द्र वर्मन' उपाधि घारण कर राजगह्दी




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