हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास | Hindi Sahitya Ka Aalochanatmak Itihas

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Hindi Sahitya Ka Aalochanatmak Itihas by डॉ. राजकुमार वर्मा - Dr. Rajkumar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट् '. विपय-प्रवेश है। यद्यपि संकलन कर्त्ता ने जीवनी का विवरण देने में खेज से काम नददीं लिया है, तथापि प्राप्त सामग्री का संग्रह एक स्थान पर कर दिया है। इस प्रत्थ से ज्ञात दोता है कि विचिध कालों में मुसलमान हिन्दी के कितने समीप थे । इस दृष्टिकोण से संकलस-कत्ती अपने उद्देश्य में सफल हुआ है। . _ संचत्‌ १६५४ में श्री गोरीशंकर द्विवेदी ने 'सुकवि सरोज' नामक ग्रन्थ में चलभद्र सिश्र , केशवदास, बिहारी लाल आदि १६ कथियों के प्रामाणिक जीवन-चरित्रों के साथ , उनकी सुंदर सुकवि सरोज रचनाओं का प्रकाशन किया । यद्यपि कवियों का चुनाव सनाब्य जाति के संबन्ध से किया गया है, तथापि इस अ्न्थ में हिन्दी के प्रायः सभी प्रधान कवि आ गए हैं । संचत्‌ १६६० से इसका दूसरा भाग प्रकाशित हुआ जिसमें गोस्वामी तुलसीदास से लेकर रामगोपाल तक ७४ सनाह्य कवियों का विवरण है । ये कचि तीन खंडों में विभाजित किए गए हूँ । पहले खंड में सं० १४८६ से सं० १६४० तक के सोलोकवासी कवि गण, दूसरे खंड में स० १६०८ से चत्तेमान काल तक के कविगण और तीसरे खंड में सं० १६४० से सं० १६०० तक के झन्य कवि गण । इस विभाजन से ज्ञात होगा कि संग्रहद-कर््ता ने कवियों के संकलन सें काल क्रम का विचार रक्‍खा है । इस संग्रह में साहित्यिक प्रगतियों का कोई उल्लेख नहीं है, केवल सनाक्य कवियों का ही संबत्तू क्रम से संग्रह है । जीवन- वितरण में कहीं कहीं खोज पूर्ण एवं मौलिक वातें कद्दी गई हैं । तुलसी- दास के सोरों जन्म-स्थान की बात सर्च प्रथम श्री गोरीशंकर द्विवेदी ने ही इस ग्रन्थ में कही है. । पुस्तक खेाज और परिश्रम से लिखी गई है । नागरी प्रचारिसी सभा द्वारा सम्पादित शब्द्सागर की आठवीं जिल्‍्द में हिन्दी साहित्य के इतिददास की रूप-रेखा यथेष्ट परिष्कृत , हुईं। इसके लेखक थे पं० रामचन्द्र शुक्त । उसी हिन्दी साहित्य. सामग्री को विस्तारपूर्वक लिख कर झुक्ल जी ने संबत्तू का इति्टास १६८६ में एक दिन्दी साहिस्य का इतिहास लिखा | दि० सा० झा० इ०--९ री




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