कल्याण | kalyan

Book Image : कल्याण  - kalyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड* पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्‌ पूर्णमुद्च्यते । पूर्णस्थ पूर्णमादाय पूर्णमेवावदिप्यते || ये मुक्तावपि निःस्प्रदाः प्रतिपदप्रोन्‍्मीलदानन्ददां यामास्थाय समस्तमस्तकमणिं छुवन्ति य॑ खे बचे । - तान्‌ भक्तानपि तां च भक्तिमपि त॑ भक्तप्रियं श्रीहरिं वन्दे संततमथेवेधलुदिविसं नित्यं शरण्यं भजे ॥ हि र कि संख्या श्‌ ब्ष रेर गोरखपुर, सोर माघ २०१४, जनवरी १९५८ पूर्ण संख्या ३७४ भक्तकी भावना । || ९/ दस मेरे नेतनिमें दोउ चंद । न ४ गौर बरनि दुषभावु नंदनी स्याम चरन नँद नंद ॥ दा रु गोढक रहे. छुभाय रुपमें; निरखत आनंद कंद। पु रु जे 'श्रीपटट' प्रेम रख बंधन; क्यों छूटे दृढ़ फंद॥ र् न क्या फ् भर अँं०




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