संक्षिप्त अलंकार मंजरी | Sankshipt Alankar Manajari

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Sankshipt Alankar Manajari by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७ यहाँ राम श्रोर श्रीकृष्ण दोनों की स्ठ॒ति कवि को अभीष्ट होने के कारण दोनों ही प्रस्तुत है श्रतः प्रकृत-मात्र आश्रित है । 'पूतनामारण” शऔर 'काकोदर' पदों का भड होकर दो श्र्थ होते हैं श्रतः सभड है। 'प्रमु” पद _ विशेष्य ल्छिष्ट है । इसके श्रीराम श्रौर श्रीकृष्ण दोनों श्रथ॑ हो सकते हैं । वासनि के संयोग सों* श्रदुल राग * प्रकटाईिं, बढ़त जात समर वेग श्ररु दिनमनि श्रस्त लखाईिं । यहाँ कामदेव और दूय दोनों प्रस्तुतों का वर्णन है। विशेष्य पद “समर” श्र 'दिनमनि' दोनों प्रथक-पथक_ शब्दों द्वारा कद्दे गये हैं । श्प्कृत सात्र प्राशितश्दिप्-विशेष्य सभंगश्वोप का उदाहरण-- सोहत हरि-कर संग सों श्रतुल राग दिखराय, 5 तो मुख श्रागे अ्लि तऊ कमलाभा छिपजनाय 1 यहाँ मुख के उपमान कहें जाने के कारण, कमला ( लक्ष्मी ) और कमल दोनों श्रग्रस्तुत हैं ! विशेष्य पद 'कमलाभा” शिलष्ट है। इनका, 'कमलाभा? और 'कमल-श्राभा” इस प्रकार श्राभा भंग होकर दो झथे दोते हैं। श्र इसी दोहे को-- काकोदर (इन्द्र के पुत्र जयन्त विपक्षी) की भी रक्षा करने वाले हैं । श्रीकष्ण-पत् में भर्थ--पूतना-मारण -न पूतना राक्षसी को मारने में चतुर, काकोदुर न कालीय : सपं जो चिपत्ती था उसकी भी रक्षा करनेवादसो । कामदेव के पक्ष में मदिरा का पान धर सूर्य के पक्ष में वारुणी .. पश्चिम दिशा) । हों . कामदेव के पत्त में अत्यन्त श्रनुराग श्योर सूर्य के पक्ष में श्ररुणता । उन्लीराधिकाजी के अति सखी की उच्ति है । श्रापकी सुख शोभा के झ्रागे' हरि (विष्णु) के हाथों के स्पर्श से श्रतुलराग (श्रनुराग) प्राप्त कमला (लचमी) की भा. (कांति) छिप जाती है । झथवा हरि (सूयं) के कर (किरण) के स्पशे हे अधिक राग (रक्त) होने वाली कमल की झाभा (कांति) छिप जाती हैं । कं




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