संक्षिप्त अलंकार मंजरी | Sankshipt Alankar Manajari
श्रेणी : भाषा / Language
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.88 MB
कुल पष्ठ :
230
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१७
यहाँ राम श्रोर श्रीकृष्ण दोनों की स्ठ॒ति कवि को अभीष्ट होने के
कारण दोनों ही प्रस्तुत है श्रतः प्रकृत-मात्र आश्रित है । 'पूतनामारण” शऔर
'काकोदर' पदों का भड होकर दो श्र्थ होते हैं श्रतः सभड है। 'प्रमु” पद
_ विशेष्य ल्छिष्ट है । इसके श्रीराम श्रौर श्रीकृष्ण दोनों श्रथ॑ हो सकते हैं ।
वासनि के संयोग सों* श्रदुल राग * प्रकटाईिं,
बढ़त जात समर वेग श्ररु दिनमनि श्रस्त लखाईिं ।
यहाँ कामदेव और दूय दोनों प्रस्तुतों का वर्णन है। विशेष्य पद
“समर” श्र 'दिनमनि' दोनों प्रथक-पथक_ शब्दों द्वारा कद्दे गये हैं ।
श्प्कृत सात्र प्राशितश्दिप्-विशेष्य सभंगश्वोप का उदाहरण--
सोहत हरि-कर संग सों श्रतुल राग दिखराय, 5
तो मुख श्रागे अ्लि तऊ कमलाभा छिपजनाय 1
यहाँ मुख के उपमान कहें जाने के कारण, कमला ( लक्ष्मी ) और
कमल दोनों श्रग्रस्तुत हैं ! विशेष्य पद 'कमलाभा” शिलष्ट है। इनका,
'कमलाभा? और 'कमल-श्राभा” इस प्रकार श्राभा भंग होकर दो झथे दोते
हैं। श्र इसी दोहे को--
काकोदर (इन्द्र के पुत्र जयन्त विपक्षी) की भी रक्षा करने वाले हैं । श्रीकष्ण-पत्
में भर्थ--पूतना-मारण -न पूतना राक्षसी को मारने में चतुर, काकोदुर न कालीय :
सपं जो चिपत्ती था उसकी भी रक्षा करनेवादसो ।
कामदेव के पक्ष में मदिरा का पान धर सूर्य के पक्ष में वारुणी
.. पश्चिम दिशा) ।
हों . कामदेव के पत्त में अत्यन्त श्रनुराग श्योर सूर्य के पक्ष में श्ररुणता ।
उन्लीराधिकाजी के अति सखी की उच्ति है । श्रापकी सुख शोभा के झ्रागे'
हरि (विष्णु) के हाथों के स्पर्श से श्रतुलराग (श्रनुराग) प्राप्त कमला (लचमी)
की भा. (कांति) छिप जाती है । झथवा हरि (सूयं) के कर (किरण) के
स्पशे हे अधिक राग (रक्त) होने वाली कमल की झाभा (कांति) छिप
जाती हैं । कं
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