भूषण ग्रंथावली | Bhushan Granthawali

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Bhushan Granthawali by छत्रपति शिवाजी - Chhatrapati Shivaji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ के बाद ही रचित दो सकता हे । इसका फुछ लोग ये पाठ भेद मानते हैं-- शिषा को सराहें। के सराहों छूनसाल को पर यदद टीक नहीं जँचता । शिवाजी को सत्य के समय तत्कालीन इतिहास में छुन्साल का स्थान क्या था ? उस समय तक यह एक साधारण चविद्रोदी राजा के रूप में मिलते हैं जिन पर सं० ९७३७ चि० में तहदव्वर खाँ घ्ादि सर्दारों को ध्ौरंगज़ेच ने भेजना उचित समझा था । इसके पदिले वे उसी देश चे छोटे सटे ज़र्मीदार ध्यादि का परास्त कर करद बनाने में लगे हुए थे । इसलिए दूसरा पाठ ता शुद्ध नहीं है पद्िला पाठ ही ठीक है । ध्यव देखना है कि सं० १७६४ घि० में इन्दीं मददाराज छुतसाल का सारत- साम्राज्य में क्या स्थान था | उस समय इनकी ्चस्था छुप्पन वर्ष की थी श्मौर इन्होंने मुग़ल साम्राउय के वड़े वड़े ध्यनेक सर्दारों का परास्त कर प्पना राज्य ट्ढ़ कर लिया था । इसी चप चद्दादुर शाद्द ने भी इनको इनके ध्ज्ित राज्य की सनद् दे दी थी | तात्पर्य यद्द कि उस समय महाराज छुत्रसाल इस याग्य हा गए थे कि मराठा साम्राउय के ध्धिपति साहू जी से उनकी समुचित तुलना की ज्ञा सकती थी । इस तर्कावली से यदद सिद्ध दो जाता है कि भूपण जो सं० १७६४-६५ घि० में साहू के द्रवार में गए थे घ्यौर वहाँ से श्रच्छी प्रकार पुरस्छत द्ोकर यह स्वदेश लौटते हुए सहदाराज छूनसाल के दुरबार में भी गए होंगे। यहीं इनका प्रभूतपूर्व ध्याद्र डुष्प्ा था । किवद्ती है कि भरूपण जी की विदाई करते समय महाराज छुबसाल ने उनकी पालको में स्वयं कंघा लगा दिया था जिससे कविराज जो बड़े प्रसन्न हुए श्ौर उसी समय एक दशक रच डाला । इसके समर्थन में कुछ लोग विचित्र विचित्र तरक॑ करते हैं । एक तकं यों है कि ऐसा थादर करना चिशेषतः युवकों हीके याग्य है जो समय पर काई विचार उठते हो उसे चढ




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