बिखरे मोती | Bikhre Moti

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Bikhre Moti  by सुभद्रा कुमारी चौहान - Subhadra Kumari Chauhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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' विनीत निवेदन, हनन वा में ये “बिखरे मोती ”. बाज पाठकों के सामने उपस्थित करती हूँ; ये सब एक ही-सीप से नहीं. निकले हैं। 'रूद़ियों 'ोर सामाजिक वन्धनों की शिला झों पर अनेक निर- पराधघ 'ात्माएँ प्रतिदिन ही चूर-चूर हो रही हैं । उनके हृद्य- 'मुंबिन्दु जहाँ-तहाँ मोतियों के .समान चिखरे पढ़े हैं । मेंने तो उन्हें केवल बटोरने का ही प्रयत्न किया है। मेरे इस प्रयत्न में कला को'लोभ है और अन्याय के प्रति चोभ भी । सभी सानवों के -हृरय एक-से हैं। वे पीड़ा से दुगखित - अत्याचार से रुप श्र करुणा- से द्रवित होते हैं । दुःख रोप, और करुणा, किसके हृदय में नहीं हैं? इसीलिए ये कहानियाँ मेरी न होने पर भी . मेरी हैं, ्ापकी न होने पर भी झापकी - और किसी विशेष की-न होने पर भी सबकी हैं । समाज 'गौर ग़हस्थी के भीतर, जो 'घात- प्रतिघात निरंतर होते रहते हैं उनकी यह श्रतिथ्वनियाँ मात्र उन्हें 'ापने सुना होगा । मैंने कोइ नई बातं नहीं लिखी है; केवल उन प्रतिध्वनियों' को 'अपने भावुक हृदय नर




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