जैनग्रन्थ रत्नाकर - उत्थानिका | Jaingranth Ratnakar - Utthanika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.11 MB
कुल पष्ठ :
364
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कटरा जंज्डें-डेिससनस रो
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|. जनग्रन्थरलाकरे १७ हि
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अथप्ल भाथथााााथाााप ा्ाााथ थ हो. स्िथ्प् आााि चहल ध्लथ् अध्टाप्ाप्पप्ा्ा
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पर न्तियोंके आधारसे उनमे अनेक असंभव घटनाआका समावेश किया (*
१4 गया है, जिनपर एकाएक विश्वास नहीं किया जा सक्ता । ऐसी ज
र दशा चरित्रसे जो लोकोपकार होना चाहिये, वह नहीं होता ।
के क्योंकि चरित्रका अर्थ चारित्र अथवा आचरण हैं, ओर जआाचरणोंमें (०
| अन्तवांध्य दोनोंका समावेग होना चाहिये । जिनचरित्रोंसे यह वात [£*
१ नहीं है, वे पूर्ण चरित्र नहीं हैं। कविवर् बनारसीदास जीके जीवनचरि- दि
2 चसे भाषासाहित्यकी इस एक बडी भारी जुटिकी पूर्ति होगी । श
२ क्योंकि अन्तवीधय चरित्रोंका इसमें अच्छा चित्र खींचा गया है । हर
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श प्रारंभ ।
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२ पानि-जुगलपुर शीस घरि, मान अपनपों दास । जज
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१ आनि भगत चित जानि प्रभु, चन्दों पीस सुपास ॥ १ ॥ है
२. यह मगलाचरण अर्धकथानकका है । कविवर पार्थनाथ और
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गे सुपाश्चनाथके विशेष भक्त थे, इसलिये कवितामे यत्र तत्र उक्त ्ि
| जिनेन्द्रदय की ही स्तुति की हैं । आपका जन्मनाम चविक्रमाजीत
१ था; परन्तु आपके पिता जब पार्नाथसुपार्थनाथकी जन्मभूमि
१3 बनारस ( काशी ) की यात्राको गये थे, तव सत्तिवदा बनारसी-
*) दास नाम रखदिया था; इसका विशेष विवरण आगे दिया गया हि
2 है । बनारसीदासजी को भी अपने नामके कारण बनारस और जि
32 उक्त जिनेन्द्यके चरणोंसे विशेषानुराग हो गया था । चनारसी-
पक नगरी की व्युत्पत्ति देखिये आपने कसी सुन्दर की हे--
क्र पमनुसनवपा मे कमरा: 3: द टाटा टगायान न
भी १ पाश् ।. ९ सुपाश्ध 1 ह
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