जैनग्रन्थ रत्नाकर - उत्थानिका | Jaingranth Ratnakar - Utthanika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कटरा जंज्डें-डेिससनस रो | |. जनग्रन्थरलाकरे १७ हि पट शा 1 जि अथप्ल भाथथााााथाााप ा्ाााथ थ हो. स्िथ्प् आााि चहल ध्लथ् अध्टाप्ाप्पप्ा्ा टेक पर न्तियोंके आधारसे उनमे अनेक असंभव घटनाआका समावेश किया (* १4 गया है, जिनपर एकाएक विश्वास नहीं किया जा सक्ता । ऐसी ज र दशा चरित्रसे जो लोकोपकार होना चाहिये, वह नहीं होता । के क्योंकि चरित्रका अर्थ चारित्र अथवा आचरण हैं, ओर जआाचरणोंमें (० | अन्तवांध्य दोनोंका समावेग होना चाहिये । जिनचरित्रोंसे यह वात [£* १ नहीं है, वे पूर्ण चरित्र नहीं हैं। कविवर्‌ बनारसीदास जीके जीवनचरि- दि 2 चसे भाषासाहित्यकी इस एक बडी भारी जुटिकी पूर्ति होगी । श २ क्योंकि अन्तवीधय चरित्रोंका इसमें अच्छा चित्र खींचा गया है । हर 4 श प्रारंभ । श्श ह २ पानि-जुगलपुर शीस घरि, मान अपनपों दास । जज नर १ आनि भगत चित जानि प्रभु, चन्दों पीस सुपास ॥ १ ॥ है २. यह मगलाचरण अर्धकथानकका है । कविवर पार्थनाथ और ४ पर गे सुपाश्चनाथके विशेष भक्त थे, इसलिये कवितामे यत्र तत्र उक्त ्ि | जिनेन्द्रदय की ही स्तुति की हैं । आपका जन्मनाम चविक्रमाजीत १ था; परन्तु आपके पिता जब पार्नाथसुपार्थनाथकी जन्मभूमि १3 बनारस ( काशी ) की यात्राको गये थे, तव सत्तिवदा बनारसी- *) दास नाम रखदिया था; इसका विशेष विवरण आगे दिया गया हि 2 है । बनारसीदासजी को भी अपने नामके कारण बनारस और जि 32 उक्त जिनेन्द्यके चरणोंसे विशेषानुराग हो गया था । चनारसी- पक नगरी की व्युत्पत्ति देखिये आपने कसी सुन्दर की हे-- क्र पमनुसनवपा मे कमरा: 3: द टाटा टगायान न भी १ पाश् ।. ९ सुपाश्ध 1 ह नुलूतनुलूलतूल्ूतवृकुन्ततदून्यूतततदृन्ततदन्द्पल्ततदपृत्ततकतकतनल नगद चे




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