राजस्थान का पिंगल साहित्य | Rajasthan Ka Pingal Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हूँ है. प्रयाण फे समय ठोलो आर ढाड़ो लोग इसे सेना फे आगे गाते हुए चलते थे । डिंगत भाषा फे फबियों ने इसफा वर्णन फिया हैं” । युद्ध का अवसर न होने से यह राग बाय दाने: घने: घिव्मुत होता चला जा रहा हूँं। संगीत-दास्त्र संबंधों प्राचीन संस्यत्त प्रंयां में इस राग का नामोत्लेंप्र नहीं मिलता । परन्तु भठारयीं दाताददो बीर उसके याद फे फुछ प्रंयों में इसका नाम देसने नें माता है । उदयपुर के सरस्पती-भें डार में “रागमाला' फो एक चित प्रति सुरक्षित है। यह फदाचित महाराणा जर्पासिह के राजत्व-फाल (सं० १७२७-५४) में तंयार की गई थो । घसमें राग शिधू को राग दीपक फा पुत्र वतलाया गया हैं । इसमें राग लियू प्या एफ भव्य चित्र थी हूं । हि संगोत फला फे साथ-नाथ संगीत्त-साहित्य फो भी राजस्थान से बहुत प्रोह्ाहन मिला है । संगोत-दास्न संघंधी फई उत्फृप्ट प्रंथ यहाँ सिये गये है जिनमें संगीत-फला के चघिविघ अंगों का चड़ा सुकष्म और चेशानिफ विवेचन मिलता हैं । इनमें मेचाइ पे सहाराणा फुनाजी (सं० १४६०-१५२५) के रखे चीन ग्रंथ चहुत प्रसिद्ध हे-संगीत-मीमांसा, संगीतराज शोर सुडप्रबंध? 1 प्रनमें संगीतराज सब से चड़ा है। फहा जाता है कि इसमें १६००० दलोफ थे । परंचु आजफत यह ग्रंय पूरा नहीं मिलता । जयपुर के फछवाहा राजा सगवंतदास (सं० १६३०-४६) के पुत्र सापचसिदह्द बड़े संयोत-प्रेसी थे । इन्होंने खानदेदा के पुंडरोक चिद्ल से राग-मंजरो' नाम या एक प्रंथ लिसवाया था. जो प्रकादित भी हो चुका हु। भगवंतदास से कोई दो सो य् ना 12, (के) हुबो अत्ति सींववी सगे बागी हकां । घाट आया पिसण घाट लागे धकाँ 11 -सरदास [संग १५४५-१६७५) (सर) सखी अमीणों साहियो, निरग काठी नाग । सिर रास मिण सांमधम, री सिंधू राग 11 -वॉकीदास (सं० १८२८-९०) ७ (ग) आाठस जाग ऐस में, यपु ढीले विकसंत । मींवू सुणियाँ सी गुणी, कब्न न सात कंत 11 . -सुरजमल (सं० १८७२-१९२४) 13. हरबिलास सारड़ा; महाराणा कुंभा, पु १६६ व, एम० कृप्णमाचार्य ; हिस्ट्री भाव वलासिकल संस्कृत लिटरेचर, पु० ८६२ 15, ओझा; राजपूताने का इतिहास, पहली जिल्द, पू० ३२




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