राजस्थान का पिंगल साहित्य | Rajasthan Ka Pingal Sahitya
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.18 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हूँ है.
प्रयाण फे समय ठोलो आर ढाड़ो लोग इसे सेना फे आगे गाते हुए चलते थे ।
डिंगत भाषा फे फबियों ने इसफा वर्णन फिया हैं” । युद्ध का अवसर न होने
से यह राग बाय दाने: घने: घिव्मुत होता चला जा रहा हूँं। संगीत-दास्त्र
संबंधों प्राचीन संस्यत्त प्रंयां में इस राग का नामोत्लेंप्र नहीं मिलता । परन्तु
भठारयीं दाताददो बीर उसके याद फे फुछ प्रंयों में इसका नाम देसने नें माता
है । उदयपुर के सरस्पती-भें डार में “रागमाला' फो एक चित प्रति सुरक्षित
है। यह फदाचित महाराणा जर्पासिह के राजत्व-फाल (सं० १७२७-५४) में
तंयार की गई थो । घसमें राग शिधू को राग दीपक फा पुत्र वतलाया गया
हैं । इसमें राग लियू प्या एफ भव्य चित्र थी हूं ।
हि
संगोत फला फे साथ-नाथ संगीत्त-साहित्य फो भी राजस्थान से बहुत
प्रोह्ाहन मिला है । संगोत-दास्न संघंधी फई उत्फृप्ट प्रंथ यहाँ सिये गये है
जिनमें संगीत-फला के चघिविघ अंगों का चड़ा सुकष्म और चेशानिफ विवेचन
मिलता हैं । इनमें मेचाइ पे सहाराणा फुनाजी (सं० १४६०-१५२५) के
रखे चीन ग्रंथ चहुत प्रसिद्ध हे-संगीत-मीमांसा, संगीतराज शोर सुडप्रबंध? 1
प्रनमें संगीतराज सब से चड़ा है। फहा जाता है कि इसमें १६००० दलोफ
थे । परंचु आजफत यह ग्रंय पूरा नहीं मिलता । जयपुर के फछवाहा राजा
सगवंतदास (सं० १६३०-४६) के पुत्र सापचसिदह्द बड़े संयोत-प्रेसी थे । इन्होंने
खानदेदा के पुंडरोक चिद्ल से राग-मंजरो' नाम या एक प्रंथ लिसवाया
था. जो प्रकादित भी हो चुका हु। भगवंतदास से कोई दो सो य्
ना
12, (के) हुबो अत्ति सींववी सगे बागी हकां ।
घाट आया पिसण घाट लागे धकाँ 11
-सरदास [संग १५४५-१६७५)
(सर) सखी अमीणों साहियो, निरग काठी नाग ।
सिर रास मिण सांमधम, री सिंधू राग 11
-वॉकीदास (सं० १८२८-९०)
७
(ग) आाठस जाग ऐस में, यपु ढीले विकसंत ।
मींवू सुणियाँ सी गुणी, कब्न न सात कंत 11
. -सुरजमल (सं० १८७२-१९२४)
13. हरबिलास सारड़ा; महाराणा कुंभा, पु १६६
व, एम० कृप्णमाचार्य ; हिस्ट्री भाव वलासिकल संस्कृत लिटरेचर, पु० ८६२
15, ओझा; राजपूताने का इतिहास, पहली जिल्द, पू० ३२
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