हिंदी का आधुनिक साहित्य | Hindi Ka Adhunik Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.8 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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घीरे रीति या परम्परा की जडता में इतना आ्रावद्ध हो गया, कि उसमे कवित्व
की रही-सही मात्रा का भी लोप हो गया । भाषा, छन्द, या अलकार के
व्यामोह ने कथित्व की सत्ता को ही जंसे समाप्त कर दिया हो ! बदलती
परिस्थितियों के प्रति कवि सजग न रहा ।
यह व्यामोहू काव्य मे ही नहीं था; राजनैतिक क्षेत्र मे भी यहीं व्यामोह
छाया हुद्रा था । ग्रीरंगजेव के राज्य-जासन के उत्तरार्थ से जो पतन का
इतिहास श्नारम्भ होता है वह मारत की पूर्ण पराधीनता मे ही जाकर समाप्त
होता है । इस प्रकार सन् १८४८ ई० की पूर्ण पराधीनता भी एकाएक नहीं
श्राई थी । उसका भी कारण था--यही व्यामोह '. दरबारी-षड्यन्त्र, आपसी
भेद-भाव, एव बद्यानुगत शात्रुताश्रो ने इतना विकराल रूप धारण किया कि बद-
लती परिस्थितियों की श्रतिक्रिवा शून्य-प्राय-सी रह गई. सिराजुद्दौला, टीपू
सुल्तान, या इसी प्रकार के अन्य प्रतिरोध इक्के-दुक्कें श्रसहाय प्रयट्नमात्र ही
बन कर रह गये )
समथे रामदास व सन्त तुकाराम का उत्तेजक व “सस्ती भरा धार्मिक
स्वर भी उस युग के धर्म ब्यासोह मे धीरे-धीरे शून्य हो गया । वार्मिक-क्षेत्र मे
भी गतानुगतिकत्ता एव जडता व्याप्त होती गई । बदलती परिस्थितियों के
प्रति चेतना का विद्रोह दव-सा गया |
चहु युग प्रतिक्रिया हीन जड़ता का युग बन चुका था ।
प्रस्तुत यूग
-तव श्राया नया युग 1 सन् १८०३ ई० मे साहित्य मे नई चेतना का स्फुरण
स्पष्ट हुवा । इंशा श्रत्ला खाँ एवं सुनी सदासुखलाल ने नयी “वोली' ही-नहीं
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