राजस्थानी शब्द कोष भाग 3 | Rajasthani Sabad Kos Part 3
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39.15 MB
कुल पष्ठ :
724
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)म रेर४ १
मगण
भ--देवनागरी लिपि का चोबीसवा व प वर्ग करा चोथा वर्ण जो भाषा-
विज्ञान व व्याकरण की दृष्टि से दयोष्ठ्थ झघोप, महाप्राण तथा
स्पर्श व्यजन है । पर श्रत्य भ श्रशत अघोष रहता है । इसका
श्रल्प प्राण व है ।
भइस --देखो 'मस' (रू भे )
सइसो--देखो 'मेंसो' (रू भे )
(स्त्री ० भइस)
भकारी-स० स्त्री+ [स० मकारन-डीपू] १ भुनगा ।
२ एक प्रकार का छोटा मच्छर जो चौपायो को काटता है ।
भख-वि०--९ निधन, कंगाल, मुखा |
उ०--मन घक पक फुमारग मार्थ, एवड खक पवित्र इसी । दिल-
वड भख “'गभीर' न दूजी, जाता सख “गभीर' जिसी ।
--ठाकर गभीरसिघ रो गीत
भग-स० पु० [स० भड़ ] १ ट्वटने की क्रिया या भाव, ट्वट ।
२ दरार ।
३ घाव, क्षत ।
उ०--गुण बाण सीघरिष गाढ, वाहति ताणक वाढ । वढूक बार
मार, भालोड भग सभार ।--गु रू व
४ पुथकता, झलहदगी ।
५ भ्रष्ट, हिस्सा, ठुकडा, ट्रक ।
६ निष्चय प्रतीति, नियम श्रादि मे पड़ने वाला श्रन्तर ।
७ किसी कार्य को स्थगित करने की क्रिया ।
८ वाघा, विध्न, रुकावट, गडवडी ।
उ०--ताहरा राजा लीलानू वोलाई । वोलाइ ने वात पूछी ।
थारी तपस्या मे भग क्यु हुवी । मोनु साच कह्ठि ।
-एदेवजी बगडावता री वात
£ प्रतिवघ, मुश्त्तली ।
१० भाग जाने की फ़िया ।
११ पराजय ।
१२ श्रसफलता ।
१३ नादा, वरवादी ।
उ०-समढ हुवा कपड़ा सकल, भमछ हुवी घट भग । कमठ
बदन कुम्हलायगो, श्रमल खायगो श्रग ।--क का.
१४ कत्तव्य व्यवस्था शभ्रादि का बीच मे कुछ समय के लिए रुकना
भ्रौर ठोक तरह से न चल सकना ।
१५ घबराहट, भय भादि के कारण जन-समुद्द मे होने वाली हल-
चल, खलवली, भगदड ।
उ०-ए१ जडामुल उघाडि, भाजि ख़िडकीगढ दक्खण । हवसी-
दछ हेडवें मारि लग ्रग्गी पट्टण । खान देस मरहट्ट वराड मुलक
वस कीघा वका, सेतवघ रामेस भग पड़ियो गढ लका ।
नण्णुरू व
उ०--र२ नर्म जसाण', “'खुमाण' धीरे नहीं, भग उतराघ, गुज-
रात भीता । हृठि चढे पृठि श्रसि पूठि ' जोवाहरे, जुते गढ़ सनढ
श्रणजीत जीता ।--महाराजा रायरसिघ री गीत
१६ धघ्वस ।
उ०--लासुटानी पोछ घोड़ा १८०,००० शथ्रने हाथी १४,०००
एतली दढ लाखोटानी पोर्ठ थी । चीग्रोड भग हुवी । तरठ राणे
राणणी करमेती नू जुहर कियौ ।--मनंणमी
१७ फेर, मोड ।
१८ तह, लद्वरिया ।
१९ सिकुढन ।
२० जल-मागं, नहर |
२१ मां, रास्ता ।
उ०-चीसरे थरा नर कागुरे चाढिया, ऊमरा भुजा-हडा-श्रडीया,
प्रथी रा नाथ चाकौ दुरग पलटता, प्रथी रा गिरवरा भग पड़ीया ।
न्णुरू व
२२ छल, घोखा ।
२३ श्रदितवात रोग ।
२४ एक देश का नाम |
उ०--मगघमडल श्रग वग कलिंग कासी [कोसल-कुरू] कुसट्र
पचाल नॉगल [सुराष्टू ] विदेह सडित्ल मलय वत्स मत्स [ वरणा]
दसारण्ण चेदी सिंघु सुरसेन भग [वट्ढठा] कुणाल लाट केकय-मडला-
रद इत्यरद्धपचाविसति जनपदा श्रारया ।--व स
२५ हानि, क्षति ।
उ०--पछे पोहकर री पूजा करण लागा तर श्री रीसाई नीस-
रियो । कहो माहरो मान भग कीयी ।--नैणसी
२६ देखो “वग' (रू भे )
उ०--चडस माय वेठ्यी मिनख ऊची मूढी करने कह्यौ--म्हैं नी
शत हु श्र नी कोई पलीत । थार सरीसी ई मिनख हू । रात रा
पाज माथा सू सुतो सुत्तो नीद रे माय थरकीजगौ । इण चडस
रो भग देखने माय बैठग्यो ।--फुलवाही
२७ देखो 'भाग' (रू भे )
उ०--चालाक तो चह्ठ पिए, भोला पीए भग 1 श्रलीण सू श्रागा
रहे, रजपुता ने रग ।--अऊक का
भगश्रहारी-वि० यौ० [स० भग्गान-श्राहार+ रा० प्र० ई] भग
पीने वाला ।
स० पु०--१ शिव, महादेव ।
२ भाग पीने वाला व्यक्ति ।
भगड--देखो 'भगेडी' (मह , रू मे )
भगण-वि०--१ तोड़ने फोड़ने वाला |
२ देखो “मगी' (स्त्री ०)
(डि को)
User Reviews
No Reviews | Add Yours...