राजस्थानी शब्द कोष भाग 3 | Rajasthani Sabad Kos Part 3

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Rajasthani Sabad Kos Part 3  by रणवीर सिंह - Ranveer Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म रेर४ १ मगण भ--देवनागरी लिपि का चोबीसवा व प वर्ग करा चोथा वर्ण जो भाषा- विज्ञान व व्याकरण की दृष्टि से दयोष्ठ्थ झघोप, महाप्राण तथा स्पर्श व्यजन है । पर श्रत्य भ श्रशत अघोष रहता है । इसका श्रल्प प्राण व है । भइस --देखो 'मस' (रू भे ) सइसो--देखो 'मेंसो' (रू भे ) (स्त्री ० भइस) भकारी-स० स्त्री+ [स० मकारन-डीपू] १ भुनगा । २ एक प्रकार का छोटा मच्छर जो चौपायो को काटता है । भख-वि०--९ निधन, कंगाल, मुखा | उ०--मन घक पक फुमारग मार्थ, एवड खक पवित्र इसी । दिल- वड भख “'गभीर' न दूजी, जाता सख “गभीर' जिसी । --ठाकर गभीरसिघ रो गीत भग-स० पु० [स० भड़ ] १ ट्वटने की क्रिया या भाव, ट्वट । २ दरार । ३ घाव, क्षत । उ०--गुण बाण सीघरिष गाढ, वाहति ताणक वाढ । वढूक बार मार, भालोड भग सभार ।--गु रू व ४ पुथकता, झलहदगी । ५ भ्रष्ट, हिस्सा, ठुकडा, ट्रक । ६ निष्चय प्रतीति, नियम श्रादि मे पड़ने वाला श्रन्तर । ७ किसी कार्य को स्थगित करने की क्रिया । ८ वाघा, विध्न, रुकावट, गडवडी । उ०--ताहरा राजा लीलानू वोलाई । वोलाइ ने वात पूछी । थारी तपस्या मे भग क्यु हुवी । मोनु साच कह्ठि । -एदेवजी बगडावता री वात £ प्रतिवघ, मुश्त्तली । १० भाग जाने की फ़िया । ११ पराजय । १२ श्रसफलता । १३ नादा, वरवादी । उ०-समढ हुवा कपड़ा सकल, भमछ हुवी घट भग । कमठ बदन कुम्हलायगो, श्रमल खायगो श्रग ।--क का. १४ कत्तव्य व्यवस्था शभ्रादि का बीच मे कुछ समय के लिए रुकना भ्रौर ठोक तरह से न चल सकना । १५ घबराहट, भय भादि के कारण जन-समुद्द मे होने वाली हल- चल, खलवली, भगदड । उ०-ए१ जडामुल उघाडि, भाजि ख़िडकीगढ दक्खण । हवसी- दछ हेडवें मारि लग ्रग्गी पट्टण । खान देस मरहट्ट वराड मुलक वस कीघा वका, सेतवघ रामेस भग पड़ियो गढ लका । नण्णुरू व उ०--र२ नर्म जसाण', “'खुमाण' धीरे नहीं, भग उतराघ, गुज- रात भीता । हृठि चढे पृठि श्रसि पूठि ' जोवाहरे, जुते गढ़ सनढ श्रणजीत जीता ।--महाराजा रायरसिघ री गीत १६ धघ्वस । उ०--लासुटानी पोछ घोड़ा १८०,००० शथ्रने हाथी १४,००० एतली दढ लाखोटानी पोर्ठ थी । चीग्रोड भग हुवी । तरठ राणे राणणी करमेती नू जुहर कियौ ।--मनंणमी १७ फेर, मोड । १८ तह, लद्वरिया । १९ सिकुढन । २० जल-मागं, नहर | २१ मां, रास्ता । उ०-चीसरे थरा नर कागुरे चाढिया, ऊमरा भुजा-हडा-श्रडीया, प्रथी रा नाथ चाकौ दुरग पलटता, प्रथी रा गिरवरा भग पड़ीया । न्णुरू व २२ छल, घोखा । २३ श्रदितवात रोग । २४ एक देश का नाम | उ०--मगघमडल श्रग वग कलिंग कासी [कोसल-कुरू] कुसट्र पचाल नॉगल [सुराष्टू ] विदेह सडित्ल मलय वत्स मत्स [ वरणा] दसारण्ण चेदी सिंघु सुरसेन भग [वट्ढठा] कुणाल लाट केकय-मडला- रद इत्यरद्धपचाविसति जनपदा श्रारया ।--व स २५ हानि, क्षति । उ०--पछे पोहकर री पूजा करण लागा तर श्री रीसाई नीस- रियो । कहो माहरो मान भग कीयी ।--नैणसी २६ देखो “वग' (रू भे ) उ०--चडस माय वेठ्यी मिनख ऊची मूढी करने कह्यौ--म्हैं नी शत हु श्र नी कोई पलीत । थार सरीसी ई मिनख हू । रात रा पाज माथा सू सुतो सुत्तो नीद रे माय थरकीजगौ । इण चडस रो भग देखने माय बैठग्यो ।--फुलवाही २७ देखो 'भाग' (रू भे ) उ०--चालाक तो चह्ठ पिए, भोला पीए भग 1 श्रलीण सू श्रागा रहे, रजपुता ने रग ।--अऊक का भगश्रहारी-वि० यौ० [स० भग्गान-श्राहार+ रा० प्र० ई] भग पीने वाला । स० पु०--१ शिव, महादेव । २ भाग पीने वाला व्यक्ति । भगड--देखो 'भगेडी' (मह , रू मे ) भगण-वि०--१ तोड़ने फोड़ने वाला | २ देखो “मगी' (स्त्री ०) (डि को)




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