देसी नाम माला का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन | Desi Nam Mala Ka Bhasha Vaiganik Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.48 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[7
खण्डतर स्वर ध्वनिग्रास-अइंसके श्रन्तरगत श्रचुस्वार का प्रयोग, विसर्ग का
प्रभाव, सचि का झ्भाव, स्वर सयोगो की भरमार य श्रूति श्रौर व श्रूति का बहुतायत
से प्रयोग, स्वराघात या वलाघात का निरूपश ग्रादि बाते प्रमुखतया प्रदर्शित है -
व्यंजन ध्वनिय्रास--देशीनाममाला के शब्दों मे व्यवहृत व्यंजन ध्वनिग्राम ये है
क, ख, ग, घ, (ड० का सवेधा श्रभाव है)
च, छ, ज, क, (डा का भी श्रमाव है )
ट, ठ, ड, ढ़, ण तथा ण्ह
त, थ, द, घ, (न का प्रयोग नही है ) ।
प, फ, व, भ, म तथा म्ह
य, र, ल, व तथा ल्ह
स, ह,
देशीनाममाला के ये व्यजन धघ्वनिगप्राम देशी शब्दों मे व्यवहत होते हुए भी पूर्णतया
मध्यकालीन भारतीय श्रायंभापा के ध्वनिग्रामो का ही श्रनुकरण करते है । इन सभी
के श्रादि, मध्य श्रौर श्रन्त्य तीनो ही स्थितियों मे प्रयोग का देशीनाममाला से
उदाहरण भी दे दिया गया है ।
व्यजन ध्वनिग्रामो का ऐतिहासिक एवं वर्णनात्सक अव्ययन प्रस्तुत करने के
बाद व्यजन-परिवतेत की विविध दशाश्रों लोप, श्रागम, वर्णविपयंय, समीकरण
घोषीकरण महाप्राणीकरण श्रादि के भी उदाहरण दे दिये गये है । श्रन्त में व्यजत-
सयोगो श्रौर सयुक्ताक्षरो की भी विस्तृत चर्चा कर दी गयी है ।
(2) पदग्रासिक झध्ययव--देशीनाममाला के शब्दों का पदग्रामिक अध्ययन
एक श्रत्यन्त दुरूह कार्य है । इसके श्रघिकतर शब्द प्रकृति-प्रत्यय निर्धारण प्रक्रिया
की पहुच के वाहर हैं फिर भी ज्ञात व्यृत्पत्तिक शब्दों की प्रकृति श्रौर उनमे लगने
वाले प्रत्ययो का प्रत्याख्यान करने का सभव प्रयास किया गया हैं । पदग्रामिक श्रध्ययन
की दृष्टि से देशीनाममाला की पदावली तीन वर्गों मे बांटी गयी है सज्ञा,विशेषण तथा
क्रियाविशेषण । पुरा पदग्रासिक श्रध्ययन क्रम इस प्रकार है--
शब्दों का स्वरूप-विवेचन, प्रत्यय-प्र क्रिया, विभक्ति प्रत्यय, निर्विसक्तिक शून्य
प्रयोग व्युत्पादक प्रत्यय-व्युत्पादकपूर्वे प्रत्यय या उपसर्गों का. निरूपरण, व्युट्पादक पर
प्रत्यय-तद्धित श्रीर कुदन्ती प्रयोग । पदग्रमिक विवेचन के इस प्रयास मे देशीनाम -
माला के सभी शब्द नही श्रा सके हैं । सभी शब्दो का विवेचन प्रस्तुत करने मे
व्याकरणिक श्रपवादो की भरमार हो जाने की सम्भावना थी । व्युत्यादक प्रत्ययो के
बीच लगभग सभी देशी प्रत्ययो का परिगरान कर दिया गया है । देशीनामसाला मे
ध्रनेको शब्द ऐसे है जिनमे न तो प्रकृतिनम्र श का पता चलता है ग्रोर न ही प्रत्यय
झश का, ऐसे शब्दों का श्रथंगत श्रध्ययन ही, सभव है, ये शब्द विशुद्ध 'देशी' हैं,
इनका ज्ञान 'लोकात्' भ्र्थावधारण मात्र से ही हो सकता है ।
(3) श्रथंगत श्रध्ययन - देशीनाममाला की शब्दावली का श्रध्ययन पूर्णतया
श्रर्थविज्ञान का विषय हैं । इसका ध्वन्यात्मक एवं पदात्मक श्रध्ययन किसी भी सहत्व
का नही है । श्राचायं हेमचन्द्र स्वय ही इतने समर्थ थे कि, यदि चाहते तो इन शब्दो
का प्रकृति-प्रत्यय निर्धारण कर सकते थे, पर उन्होने इन शब्दों की व्युत्पत्ति पर बल
नदेकर, मात्र इनके श्रर्धावघारण पर बल दिया है । देशोनामलाला के शब्दों को
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