श्री धर्मचन्द सरावगी प्राक्रतिक प्रेमी | Shri Dharamchand Saravagi Prakrit Chikitsa Premi
श्रेणी : स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.3 MB
कुल पष्ठ :
519
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)होने के कारण यह इस गरीब देवा के लिए अधिक उपयोगी भी है। किन्तु
इसके लिए प्राकृतिक चिकित्सा के प्रति निष्ठा होना आवश्यक है, अन्यथा
इसका प्रभावकारी परिणाम नहीं हो सकेगा। महात्मा गांधी जीवन भर
प्राकृतिक चिकित्सा की वकालत करते रहे। हमे इस कार्य के लिए जन-मानस
को भावात्मक दृष्टि से समृद्ध करना होगा । श्रीमती पूर्बी मुखर्जी ने कहा कि
सरकार इस पद्धति को आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली के अन्तगंत ही मान्यता देने
पर विचार कर रही है। मैं इस भादाय का प्रस्ताव आयुवंदिक कौन्सिल मे
रख गी ।
श्रममन्त्री श्री विजय सिंह नाहर ने बताया कि सरकार ने तीसरी योजन।
के अन्तगंत २४ लाख रुपए प्राकृतिक चिकित्सा के लिए नियोजित किए है।
नेपाल मे भारतीय राजदूत श्रीमन्नारायण ने कहा कि कलकत्ता मे प्रारम्भ
होने वाले प्राकृतिक चिकित्सा विद्यालय द्वारा प्रशिक्षण का महत्वपूर्ण कार्य भी हो
सकेगा । जिससे प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के प्रचार मे सहायता होगी ।
श्री धमंचन्दजी ने परिषद के मन्त्री पद से परिषद की वार्षिक रिपोट प्रस्तुत
की । प्राकृतिक चिकित्सा महाविद्यालय की योजना को चारो ओर से आदातीत
सहयोग मिल रहा था । परन्तु घ्मंचन्दजी इस पक्ष मे नही थे कि त्रुटि हीन उच्च
स्तरीय दिधक्षा के अभाव मे किसी को सत्व-चिकित्सक का प्रमाण-पत्र प्रदान किया
जाए। देश-विदेशो मे घूमकर उन्होने जो अनुभव प्राप्त किया था उसके कारण
जसे-तसे विद्यालय द्वारा शिक्षा-सत्र चलाते जाना वे उचित नहीं समभते थे।
अत. वे चुस्त-दुरुइत पाठ्य-क्रम भौर योग्यतम शिक्षकों को व्यवस्था के लिए
भाग्रह करते रहे । उनके साथी आधी अधूरी जेसी भी व्यवस्था हो प्रशिक्षण कार्य
को चलाते रहने के पक्ष मे थे। धर्मचन्दजी अपने मन की बात साथियों के आगे
रखते अवद्य पर दुराग्रही वे कभी नही रहे । वे सदा यह मानकर चलते हे--
' अपने सन को हो जाए तो अच्छा है;
नहीं हो जाए तो और भी अच्छा है।”
विचारों का यह अन्तद्वन्द्र दो वर्षो तक चलता रहा । धीरे-धीरे सबको
धर्मचन्दजी के विचार की सा्थेकता का भान होने लगा। दूसरी विकसित
चिकित्सा -पद्धतियो के समकक्ष वैज्ञानिक और अनुभुत प्रशिक्षण के अभाव मे इसे
जीवनवृत्त / १२३
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