महाभारत की समालोचना भाग 1 | Mahabharat Samalochana Bhag 1

Mahabharat Samalochana Bhag 1  by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महाभारत अ्रंथ सर्वशास्का सारयंध्रह्द है । एवं जन्मानि कथगि चयक तुरजनस्थ च। चर्णयन्ति सम कचयो वेदणुद्यानि हत्पतेः॥। श्री.मारयदत श४[1३५ अकतो अजन्मा आत्मा के कर्म और जन्म जो वेदर्म गुप्त हैं, बेही कविलोग कथाओंके मिषसे चर्णन करते हैं । ” इत्यादि प्रकार ( १ ) अजन्मा और अकरतां आत्माके जन्म और कर्मोका घृत्ता- न्त जो विविध कथाओंमें दिखाई देता है, वह शुप्त रीतिसे वेदरमंत्रों में है। इस (९) बेदके तन का अलंकारों में परि- बर्तन करके मूढ जनेंकि सुखबोध के छिये कथाओं की रचना विविध प्रकार से की गई है, ( ३) तात्पस वेदका ही अर्भ भारत में कथाओं के मिषसे बताया गया हैं । पूर्वोक्त महाभारत के चर्णन में भी वेदादि घाखोंके तका विचार इस अंथमें किया गया हैं, ” यह घात जा चुकी है, उसका अनुसंधान यहां करना चाहिये । अस्त इस प्रकार बेदका आशय,;तथा अन्यान्य शाख्रों और मत्तम- तांतरों का सार इस सद्दाभारत में हैं, यह बात यहां स्पष्ट हो गई हैं । पाठक यदि महासारत मनन के साथ पढ़ेंगे,तो उनको यहां सैंकड़ों विधाओं और शाखका सार स्थानस्थानमें दिखाई देगा। किसी न किसी कथा का मिप दिखलाकर उसमें किसी शाख़का सार बताया गयाहै। के | थ नि नप अ जज अन्य न्यास (१५) इस प्रकार काव्यमय इतिहास और इतने विविध शाख्ोंका संग्रह जिसमें इकट्ठा किया गया हैं; ऐसा यही एक अपूर् ग्रंथ है।इसको तुलना किसी अन्य मनुष्यनिर्मित ग्रथ के साथ हो ही नहीं सकती । जिस समय यह अपूर्व बरंथ निमाण हुआ उस समय इसकी अपूर्वत्ता का . अनुभव विद्वानों ने भी यथायोाग्य रीतिसे ही किया था, देखिये-- अज्ञानातिमिगंधस्थ छोकस्य तु विचेतः | ज्ञानाझनदा- लाकाभिनेघ्रोन्मीलनकारण- मू0८४॥ घमोधकामसोक्षाये! समासच्यासकीतंतै। । लथा 'भारतसूयेंण चणां विनिहित तमः ॥८५॥ पुराणपूर्णचन्द्रेंण शरुतिज्योत्सनाः प्रकाशिता:; चवाद्रिकिरवाणां च कूतमेत- त्प्रकादानमू ॥ <८दे॥ इतिहा- सप्रदीपेन सोहाचरणघाति- ना। लोकग यह कूत्स्न यधावत्संप्रकाशितस॥ ८७ ॥ सहाभारत जादि. भा. ६ * अज्ञानी लोगोंकि अज्ञान को दूर करके इस मारतरूपी अंजन से जनताके ज्ञाननेत्र खोल दिये गये हैं ! इसमें धर्म अथे काम और मोक्ष का बर्णेन विस्तार से और संश्रिपसे होनेके कारण इस भारत सर्यने मानवों का अंधेरा दूर किया हैं | पुराण पू्ण चंद्र के उदय होनेसे ही अथात्‌




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