त्रिदेव निर्णय | Tridev Nirnaya

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Tridev Nirnaya by शिवशंकर शर्मा - Shivshankar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र का ६वप्टथाा तु सके लि अस्वलवलपलमलवलिव, से सदा, विमुस्द रहता । परन्तु जिन के ग्रन्थावलोकन से ये सारे | स्तरस मेरे घन्त:वारण से दूर छों गधे उन को प्रथम संदखशः नसस्कार ल्‍ो। पुनरपि सचिदानन्दकों वन्दना करता न कि बच मेरे इस सहान्‌ कार्य में सदायक शो । “यो देवेष्वथिदेवएक्यासी तू । करे देवायहविपा विधेम - चटग्वेद _ (यः) जो ( देवेपु +प्रधि ) सूय्य , चन्द्र, नजच, एधिवो, अर्नि, जल, वायु, 'घाकाथ, प्राण, इन्ट्रिय घादि समस्त देवों में (एकः १- देवः) एक दो सह्ानू देव ( आरीतू ) विद्यसान है उसी ( कस्से ) आनन्द स्वरूप ( दवाय ) सझानू देव के शिवे ('इचिएा ) स्तुति, प्रार्थना, वन्दना, उपासना, पूजा पादि के दारा ( विधेस ) इस सब प्रेम भक्ति किया करें । इति ॥ ः लिन प्ज्् छ्‌ जे टन न्न्रे एक देव हू: दि कीविद्वरो ! जिस काल में न्नह्मयादो-सधुच्छन्दा, मेधातिधि, दोर्घतमा, अगर्त्य, कचोवानू, गृत्समद, विश्वेमि्र, वासदेव, चचि, भरदाज, प्दस्पति, वसिष्ट, नारद, वाश्यप, नारायण, शिवसंकरुप, याज्वन्दय, ऐतरेय भ्ादि चर इन के पुच ,पोच दौड्िच शादि विदयानू तथा न्रह्मवादिनो--नोपासुद्रा, रोमशा, अपाना, घोषा, सूथ्वा, उवशी, यमी, कद्रू , गार्गी आदि विदुषी सव कोई सिल कर देश में वेद विद्या का प्रचार कार रह थे, उंस समय केवल एक ही ब्रह्म को उपासना इस देश में थी ! उस परमात्म देव को अनेक इन्द्र, /सिच, वर्ण, अग्नि, दिव्य, सुपणं, गरुत्सानू, मात रिश्ता, छथिदी, वायु आदि नासों से पुकारतेथे जैसा कि वेदों में कछा गया हैः... «|




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