योगी सार्वभौम सदाशिवेन्द्र सरस्वती तथा शंकर सदुपदेश | Yogi Sarvabhaum Sadashivendra Saraswati Tatha Shankar Sadupdesh

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Yogi Sarvabhaum Sadashivendra Saraswati Tatha Shankar Sadupdesh by पं. खंगदेव शर्मा - Pt. Khangdev Sharmaपं. मथुराप्रसाद शर्मा - Pt. Mathura Prasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ दूंगा, चद्द शाम को अपने घर चला गया शगले दिन थ्र्थात्‌ इ-द-३० ई० को वायस झाया और कड़ा कि मेरे पिता तो ईरिसिश पढ़ाना चादते हैं, मेंने कददा भाई हमने अकारण दी उापने दिर में खाज् पेदा दा की थी ( व्यथ ज़िस्मेदारी लो थी ) अच्छा छुश्या तुमने मिटादी छोर वोक दलका कर दिया 1 '४-द-३० को गढ़सुक्तेइवर चला गया, थावय भर चह्दीं रदा, थावजी के अवसर पर सुक्ते खरस्ीदा पाठशाला की दशा खिन्तनीय है यह समाचार मिला, में वहां जाने को तेयार दी था कि खडगदव श्री मास्टर इन्द्रजीतजी शर्मा की चिट्टीं लेकर आया, उसमें लिखा था कि अब खज्देव की समझ में झागया संस्कृत पढ़ेगा शाप इसका घवन्थ कर | में उसको साथ लेकर १५ अगस्त सखब, ३० को खरखोदा चलागया अर पाइणाला की परिस्थिति सुधारने के लिये चदीं ठहर गया, ११ झागर्त से इसको संस्कृत प्रवेशिका का प्रथमभाग पढ़ाना व्यारम्म किया. पक मदीचे के अन्दर संस्कृत घर्बेशिका के ३ झाग झोर संघ्यावन्दनादि चित्यक्म सब सीख लिया । इसकी बुद्धि बोर सरलता को देख कर सन इसकी ओर विशेष झाकर्षित होने लगा । यज्ञापवीव कसके लघुक्षोमदी झारस्म करादी श्र अकटूचर में में खरखोदे से सिरसा जाने लगा तो इसने कहा कि में झव और से न पढ़ सझया, सुके दूसरे का पढ़ाना पसंद न ायगा, डुःख खुस कुछ भी दो में झापके साथ रहकर पढ़ेंगा, विशेष बात्रद देख कर साथ ले गया 1 गे < जनवरी १<३१ को इसकों लघुकोसुदी समाप्त हो गई ब्यांर इसके साथ दो श्ुतवोध, चच्केसत्रद, पंचतन्त्र चे ३ तन्च शोर उत्तररामचस्ति के पक दो झंक्त भी पढ़ चुका था।




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