भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश-कथाकाव्य | Bhavisayattkaha Tatha Apbhransh Kathakavya

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Bhavisayattkaha Tatha Apbhransh Kathakavya by देवेन्द्रकुमार शास्त्री - Devendra Kumar Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अथस अध्याय प्च छा स्ताप्सा : प्तदस्प्तच्या नौर यरा प्रत्येक देश गौर जाति के मूर सस्कार उसकी अपनी भाषा, साहित्य तथा सस्कृति में निहित रहते है । जातीय जीवन, लोक परम्परा एवं सामाजिक नोति-रीतियो के अध्ययन से हमे उनको पूरी जानकारी मिलती है । अतएव भाषा और साहित्य का प्रत्येक संग लोक-मानस की अभिव्यक्ति का ही लिपिवद्ध स्वर होता है । मौखिक रूप में आज भी ह्मे गुणाढय कौ वृहृत्कथा' तथा प्राकृत मौर अपभ्रंश मे लिखित कथाएँ, सूक्तियां, सुभाषित एवं अन्य उक्तियाँ गाँवों में प्रचलित सुनाई देती हँ । वस्तुत. युग- युगो से साहित्यिक तथा सामाजिक परम्परा परस्पर विचारो का विनिमय करती आयी है 1 इसलिए परम्परा में केवल इतिहास तथा पौराणिकता का लेखा-जोखा न हो कर लोक-जीवन में परिव्याप्त यथार्थ और भादर्दा, रूप-कुरूप, नीति और उपदेश तथा वृत्ति एव रीति का भी समाहार हो जाता है । प्राय जाति तथा सम्प्रदाय का सम्बन्ध विभिन्न धर्म-नीति एवं भाषा से रहा है। यदि पालि वीद्धो की भाषा स्यात रही है तो प्राकृत जैनो की और सस्कृत पुरोहितो की । किन्तु कुछ वोलियाँ प्राग्वैदिक काल से जन-सामान्य की लोक-धारा में प्रवाहित एव प्रचलित रही हैं, जिनमें उस युग के दाव्द-रूपो की बानगी आज भी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है । उदाहरण के लिए मन गो, लाजा, रथ तथा दो, छह मौर सात आदि अन्तरीय भापाओो मेँ प्रयुक्त दाव्द हैं । लोक भाषाओ में प्रचलित कुछ वैदिक शब्द इस प्रकार हैं--अजगर , भेडो, लाहा, योद्‌ इत्यादि । कुछ भिन्न अर्थो मे प्रयुक्त शब्द भी मिलते है* तथा कई विकसित रूप में । १ मन ( दा १४।४।३।६ ), अवेस्ता, यस्न ६,२६ ।तथा मन (1५ ) के लिए देखिए--बेव्स्टर्‌स न्यु इण्टरनेकानल डिक्शनरी, प° १४६१। गच्छतीति गौ ( ङा० ६।१।२।३४ ), मोस शब्द के लिए देखिए, पेई द्वारा लिखित र द वल्डसू चीफ लेंग्वेजेज” । दो, छह और सात दाव्दों के लिए भी वही द्रव्य है। “लाजज्जुद्दोति” ( दा० १३२१ ), देखिए, टर्नर की नेपाली डिक्शनरी । रथ ( ऋ० ६! ७४६ ), लेटिन तथा आइरिडय आदि भाषाओं मँ भौ मिलता है । २ अजगरो नाम सर्प ( ऋ० ६।४।२२ } अजगर ( अजिर ), भेडो, लावा, लाहा 1 ३ रोद ओर वेच्‌ आदि शब्दौ के लिए--टनर कौ नेपालो दिक्कनरी द्रव्य है । £ चरू. चमस्‌ ओर दैव-अघर आदि । चरः (ऋ ७।६।९२ ), चमस ( श० ४।२।९४ } 1 ५ मेह, झुर्प (सूपा), उद्ुखन (उखलो, ओखली), मुसल म्रूसल), दाति (दाता) आदि | झुर्प , उद्धखल, मुसल शब्दों के लिए देखिए, ० १८१५४ । मेह (निरुक्त २,६,४) ““दातिर्लवनारथे !*' निरुक्त | २ 9 १ #। ् 1




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