उपनिषद का उपदेश खंड 2 | Upnishad Ka Updesh Khand 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.65 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
कोकिलेश्वर भट्टाचार्य - Kokileshwar Bhattacharya
No Information available about कोकिलेश्वर भट्टाचार्य - Kokileshwar Bhattacharya
नन्दकिशोर शुक्ल - Nandkishor Shukla
No Information available about नन्दकिशोर शुक्ल - Nandkishor Shukla
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सवतरशिका ॥ . ७ नित्य ज्ञानस्वरधर है # । कठोपनिषट्में भाध्यकार कहते हैं-- सब चेतन गब्सपोरिक स्पिन जीवंसा ज्ञान ब्रह्म चेतन्यसे ही प्राप्त है इस स्थलमें ऐसा भांगाक सशय) ६. सिद्धान्त भी दुखा जाता है नित्य ज्ञानस्वरूप झात्मा-ये तन्पकके रहनेसे ही सनुष्यको रुप रसादिका ज्ञान होता है । शब्द सपशझूप रस पादिक सभी जय पदार्थ हैं उनमें कोई भी ज्ञाता नहीं हो स- कता 1 क्योंफि देसा होनेसे शब्दुसुपशोदिक परस्पर एक टूसरेको -जाननेमें समय होते हैं इस लिये इनसे स्वतन्न्न कोई एक ज्ञाता है। बस वही ज्ञाता ्ात्म चैतन्य है शीर नित्य ज्ञानखरूप उस शात्स-चितन्यके द्वारा ही शब्द स्पश रुप रदाद्का बोध होता है +। इसी वातकों लक्ष्य कर क्षेनोपरनिपट सें साप्पक्षार ने जो कुठ कहा है दद भो उल्लेख-थोग्य हि । वहां पर शहर कहते हिं कि सुख दुम्खादि समस्त विज्ञानोंके दरष्टा वा साघीके रुपसे शात्मा ही जाना जाता दे । बुद्धि फा जो छुद् प्रत्यक्ष चा विज्ञान भनुसूत होता है उस सच विज्ञानके साथ-उत्त संब विकारी विज्ञानका शन्तरालवर्ती होकर पाए पििपिान # तहिज्ञानेश्सलिलेय॑ नाम सवति । व्यभिचारि तु ज्ञान ज्ञेय व्यभिचरति फदाचिदृपि १ ( शदर-भाष्य प्रश्नोपनिषद्र है। ३ )। इस बातकों शानन्द- रगिरिने यों समकाया रे- घटन्नानकालें पंटासाचसम्भवात् चिपयाणां ज्ञान च्यसिचा रित्व॑ घानर्य तु विपय-विज्ञानकालेश्वश्यम्मावनियमा त् शव्यमि- चारित्वमू । ज्ञानस्प दिपय-दिशिष्टत्वरूपेगीव व्यभिचारः । 1 छात्नघेतन्यनिभित्तमेव व चेतथितृत्थमन्प पास तरमा हेड द्साछणानू रुपादोन् एतिनेघ देहादिव्यतिरिक्तेन विज्ञानस्व्रभावेन शात्मना विज्ञेयमू 1 (२ १९।३)। इसी लिये दद्ददारणयक्म नान्यद्तोशस्ति विज्ञाता एवं न विज्ञाते विज्ञातारं दिज्ञानी याः -दन सब स्थलों में निदिकार शात्म- घेतन्यको बिज्ञाता कहा है । नित्य न्ञानख्ररूप श्रार्मवैतन्य दो बुद्धि के विकाररूप विधिय बिज्ञानोंका विज्ञाता हैं। बुद्धिकी वृत्तियां श- नित्य हूं विकारी हैं । शात्सयैतन्य नित्य झषिक्रिय है । बुद्धि इत्तिरुपाया सिज्ञातरनित्यताया विनातारं नित्यविज्ञसिरूपेण ज्ञातारमूद-रामती थे ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...