संसार को भारत का संदेश | Sansar Ko Bharat ka Sandesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रू कैसे सुन्दर पवं. सरस प्रकार से भारतबासियों के जीवन का रुक्ष्य इस कुशाम्र-बुद्धि, न्याय-परायण, सचचे एवं उदार- हृदय जर्मन घिद्वानु ने चर्णन किया है । यदि सब सभ्य पाश्चात्य राष्ट्रों का यही जीचन उद्देश्य होता तो, फिर सब भूमंडछ को हिला देने और लाखों घरों का उजाड़ देने वाले गत भीषण येरपीय भ।युरू, की नौचत काहे को आती । जब सक भारत के सिद्धान्तों को पाश्वात्य सम्प देश रवीकार न द.रेंगे तब तक संसार में सच्ची प्रीति का स्थापन होना कठिन है। इस के .पीछे हिन्दुओं के प्राचीन श्रन्थों से उदाइरण देकर मेक्समूलर ने अपने मत को भीर भी पुष्ट किया है भीर लिखा है कि हिन्दुओं के जीवव का प्रधान अंग घर्म ही है, इसका सपूचा जीवन धर्म ही था और सच चस्तुर् इस जीवग की रात दिन की आवश्यकता मात्र हो समभको जाती थों । इस तरद पांठकों के चित्त में भारत के चिघय में श्रद्धा उत्पन्न करने के पश्चात्‌ मेक्सपूलर साहय ने अपने असली विषय का जर्यात्‌ भाएतवपं के घार्मिक-सादित्य एवं वेदों के मइत्व का प्रतिपादन किया है। वे कहते हैं कि मजुष्य जाति के प्रांचीव धम के चिकाश का इतिदास ऋग्वेद में ही मिलेगा जोर कहीं उसका पता नहीं है ।इस चिप्रय में और विद्वानों ने जे। आक्षेप किये हैं, उनका मेक्लघूलर साहब ने यपोनिप उत्तर दिया है । चतुर्थ भध्याय में बहुत सी शंकाओं कासमाघान-किया गया है, दिल्‍्दुमों की तेरे डी की प्रशंत्ता को गई है और वतलाया गया है कि वे दिक धर्म विदेशीय प्रभावों से सर्वथा सुरक्षित है । उन्होंने अच्छी प्रकार से सिद्ध किया है कि जो लोग एक दो शब्द के /सददारे वेब्रीठन, चीन, इत्यादि देश का प्रेमाव शायत के वदिक साहित्यश्दूर पड़ता




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