उपनिषद | Upanishad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नमन [ है म्यतं वदिष्यामि सत्य' वदिष्यामि । तन्माम- मवठु । तद्वक्तारमवतु । अवतु मामवदु वक्तार- मवतठु वक्तारम । भ मेरी वाणी मनमें स्थित है, मेरा मन वाशीमें स्थित है। हे खप्रकाश श्रम तुम मुझे प्रकट दो, मुझे ज्ञाच प्राप्त हो । मेरा श्रवण किया हुआ 'सुमसे शुलाओ नहीं, में रात दिन पढ़े हुए का अनुसंधान करता हूँ । मैं शाखरालुसार भाषण करूंगा, में सत्य भाषण करूंगा । बह मेरी रक्षा करें, बक्ताकी रक्ता करें; सेरी रक्षा करे तथा वक्ताको रक्षा करे) ऊ? भद्दे क्रोंमिः शुणुयाम देवा भद्रपश्ये माच्षसियंजत्रा: । स्थिरेरंगेस्तुष्टवांसस्तनूभिव्यं- शेम देवहित॑ यदायु+ ॥| हूं दब, हम कान स कल्याण का वात सुन, आाखा स कल्याण देखें । दृढ़ अंगों से तथा शरीर से अपनी इंश्वर प्रदत्त आयु हमे तुम्दवारी स्तुति करते हुए व्यत्तीत करें 1 नमन । ऊु नारायण पर्भवं वसिएं शक्ति चतत्पुत्र पराश्रंच । व्यास शुकं गोडपदं महान्त॑, गोविन्द योगीन्द्र मथास्य शिष्यम्‌ ॥! १॥




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