राज योग विद्या | Raj Yog Vidhya

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Raj Yog Vidhya  by पं सत्येश्वरानंद शर्म्मा लखेड़ा - Pt. Satyeswaranand Sharmma lakheda

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थ् चिंपय प्रवेश | ““रणवन्वु विश्वे अग्धतस्य पुत्रा आये घामानि दिच्यानि तस्थुः” । “वेडाहसेतं पुरुष सहान्त मादित्यवर्ण तससः परस्तात्‌| तमेव॑ विदित्वातिसत्युसेति नान्यः पन्‍्था बिद्यते- यनाय | दे भूत की सन्तानों ! दे दिल्‍्प घास निधासियों ! खुनों इस अलघ्वानान्धकार से छान रूपि श्रकादा में पईुचसे का रास्ता पा लिया है; - जो इस सारे तस ( अन्धफार ) से परे हूं उनको जान लेने से ही, उल श्ञानोज्घल (शान से देदीप्यसान) स्थान में पहुँचा जाता है; सुक्ति का इससे अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है । राजयोग चिया इसी सत्य को प्राप्त करने के लिए और इसमें यथार्थ सफलता पाने के लिए थ इस साधना के उपयोगी चैज्ञानिक घणाली को मनुष्यों के विपय में स्थर्पित करने का घस्ताव फ्रती है । इसमें सबखे पदिटी वात तो यह है, कि घत्येक चिद्या फी दी अनुसन्धान व. साधन प्रणाली जुदी खुददी हुआ करती है । जैसे यदि तुम ज्योतिपि होना चाइो, और चैठे २ केबल ज्योतिप २ की रद छगाकर खिल्‍्छाते रदो, तो ज्योतिप का तुम्दें कुछ भी ज्ञान न दो पायेगा । रसायन-शास्त्र के विषय में भी यही घात है, इसमें सफ्ंखता पाने के लिए भी




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