जंजीरे और दीवारे | Janjeere Or Divare

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : जंजीरे और दीवारे  - Janjeere Or Divare

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामवृक्ष बेनीपुरी - Rambriksh Benipuri

Add Infomation AboutRambriksh Benipuri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जंजोरें श्रौर दीवारें 960 9६9६-६७ घ9-9६१६०६०+०६०-०९-७ ७-६७ ७-० ०-७०७-७७-० 00 थी, वह न जाने कब, कहा खिसक गई ! नया जत्था तैयार कर मैं सिटी-कोटट तक पहुँचा था कि पुलिस-वान श्रागे घेर- कर खडा हो गया और अभी-ग्रभी वह भव्य-दिव्य सवारी मुक्ते इन दीवारों के नीचे पटककर चली गई है ! वे दीवारे , ये जंजीरे ! जजीरे खनकती है, बोलती है ! लाल कपडे की पुष्ठ्ुमि में ठगी जजीरे सुक्ते देखकर मुस्कुरा रही हैं ! वे कब बोल उठेंगी ? सुखर हो उठेगी * “रब भीतर चलिए !” इन्सपैक्टर वापस जा रहा है--क्या उसकी ग्राँखो में पानी है ? जमादार साहब भीतरी गेट खोल रहे है--क्या उनकी भ्रगुलिया थरथरा रही है ? अब हम जेल के अन्दर है ! इन दीवारों ने अरब पूरे तौर से हमे घेर लिया ! घेर लिया ?--कितने दिनो के लिए ? . मै काप गया ! इन पत्थर-सी दीवारों के घेरे ने, जिस हृदय को थोडी देर पहले पत्थर का बना लिया था, उसे मोम- सा पिघला दिया । मै काप गया । श्राज पचीस वर्षों के बाद जब उन स्मृतियो को कलमबन्द करने चला हू, तो मैं उसकी कपकपी अनुभव कर रहा हू । यह कपकपी क्यो '--यह क्लीवता क्यो * भ्रभी कुछ क्षण पहले अपने को पत्थर महसूस कर रहा था, यह मोम कहा से पिघल श्राया ? कुछ क्षण पहले भ्रर्जुन सदास्त्र होकर चला था । महाभारत मचाने--फिर यह थरथरी कैसी ? १७




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now