जंजीरे और दीवारे | Janjeere Or Divare
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.46 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामवृक्ष बेनीपुरी - Rambriksh Benipuri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जंजोरें श्रौर दीवारें 960 9६9६-६७ घ9-9६१६०६०+०६०-०९-७ ७-६७ ७-० ०-७०७-७७-० 00
थी, वह न जाने कब, कहा खिसक गई ! नया जत्था तैयार
कर मैं सिटी-कोटट तक पहुँचा था कि पुलिस-वान श्रागे घेर-
कर खडा हो गया और अभी-ग्रभी वह भव्य-दिव्य सवारी
मुक्ते इन दीवारों के नीचे पटककर चली गई है !
वे दीवारे , ये जंजीरे ! जजीरे खनकती है, बोलती है !
लाल कपडे की पुष्ठ्ुमि में ठगी जजीरे सुक्ते देखकर मुस्कुरा
रही हैं ! वे कब बोल उठेंगी ? सुखर हो उठेगी *
“रब भीतर चलिए !”
इन्सपैक्टर वापस जा रहा है--क्या उसकी ग्राँखो में
पानी है ? जमादार साहब भीतरी गेट खोल रहे है--क्या
उनकी भ्रगुलिया थरथरा रही है ?
अब हम जेल के अन्दर है !
इन दीवारों ने अरब पूरे तौर से हमे घेर लिया ! घेर
लिया ?--कितने दिनो के लिए ?
. मै काप गया ! इन पत्थर-सी दीवारों के घेरे ने, जिस
हृदय को थोडी देर पहले पत्थर का बना लिया था, उसे मोम-
सा पिघला दिया । मै काप गया । श्राज पचीस वर्षों के बाद
जब उन स्मृतियो को कलमबन्द करने चला हू, तो मैं उसकी
कपकपी अनुभव कर रहा हू ।
यह कपकपी क्यो '--यह क्लीवता क्यो * भ्रभी कुछ
क्षण पहले अपने को पत्थर महसूस कर रहा था, यह मोम
कहा से पिघल श्राया ? कुछ क्षण पहले भ्रर्जुन सदास्त्र होकर
चला था । महाभारत मचाने--फिर यह थरथरी कैसी ?
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