ब्रह्म - संहिता | Brhma-sanhita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.95 MB
कुल पष्ठ :
566
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६४६ )
(ग्रन्थ रचना की आवशक्ता )
सम्भव दे कि त्रेच्चा में श्रन्य आज कल की भांति नहीं
रे जाते दंगे क्यो कि उस युग के मजुष्य मेघावी और स्मृति
मान डुबा करते थे । उनको सम्दूण शाख्रों के सूत्र पाठ सुख
जबानी याद रखते थे । न तो उस चक्त आज कछ वी भांति
कागज और कलम स्वाद्ी थी न प्रेस भादि की मदिनरी ही
थी, जब मजुष्य अठ्प स्मृति मान होने लगे जब इनको लेखन
कला की आवशयक्ता पड़ी और इन्हों ने प्रथप वृक्षों की छाल
और प्सोपर बुक्षो के रखो के दारा लिखना प्रारम्भ किया ।
इसके बाद फिर धातुओं के पत्रों पर लिखना शारम्म किया
फिर ख्ूज पट अथौोत् कपड़े पर मसाला लगा कर विविध
प्रकार के रंगों हारा लिखना प्रारंभ किया अथवा इसके वाद
के युर्गो में छकडी के तक्षते बनता कर उस पर रंग चढ़ा कर
अ्न्थ लिखना प्रेम किया इसके बाद कागज को आविष्कार
हुबा और उस पर लिखना इरू किया इसके दाद छकडे का
ग्रेस यंत्र बनाकर पत्थर पर लिख कर छापना शुरु किया इस
प्रकार अन्थ लिखने की शैली चढती आई है। हमारे आयु
देंद बिद्याके मन्त्र दुत्न न्छोक मी इसी झेणी में परिवतेन
होते' आये हैं और भाज इमारे सामने भी घह्द प्रेस के रुपए
अच्छरों में छपे हुने श्रन्थ प्रत्यक्ष सामने मोजूदा हैं ।
महर्षि भारद्वाल के पुनवेसु और पुनवेसु से अग्निवेश,सेठ
सदकणे पाराशर दारीत और छारवाणी ये कै शायाये भार-
दाज् परिपाठी के हैं और धघन्वन्तरी के खुझुत औौपयेनद,
User Reviews
Saurabh
at 2019-03-15 11:48:09"Worst book"