हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास भाग 1 | 914 Hindi Sahitya Ka Vrhat Etihas Vol - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ( हिंदी साहित्य के बदत्‌ इतिहास का यह पीठिका भाग हिंदी साहित्य के समस्त इतिहास की प्ृष्टिभूमि है, जहाँ से उसके मूल श्रथवा उद्गम को जीवनरस श्रौर पोषण मिलता है। पाश्चवर्ती श्रौर समानांतर प्रभावों का भी यथास्थान विवेचन किया गया है, कितु गौण रूप से । इसकी रचना हिंदी साहित्य के बृदत्‌ इतिहास की योजना के श्रनुसार सददकारिता के श्राघार पर की गई है। इसके प्रणुयन में चार लेखकों का सहयोग है। परस्पर एकरूपता तथा सामंजस्य का यथासंभव ध्यान रखते हुए भी इस प्रकार के प्रयास में पुनरात्ति श्र यट्किंचित्‌ वेपम्य रद ही जाता है। संपादक लेखकों के ऊपर श्रपना मत या आग्रह्ह श्वारोपित नहीं करता । वह केवल यही देखता है कि विविध सददयोगी लेखको की रचनाएँ शास्त्रीय मर्यादा के झनुकूल हैं या नहीं श्रौर विविध खंड प्रस्तुत योजना के यथासंभव श्ंगीसूत हो पाए हैं या नहीं । इसके अनंतर शझपने मतों श्ौर प्रस्तावनाओ के लिये व्यक्तिगत लेखक दी उत्तरदायी दोता है। झपने विपय के सिद्धइस्त लेखकों के प्रामाणिक विचार पाठक के सामने झ्रा सकें, यही उद्देश्य ऐसी योजना के सामने रहता है । पुनरा- बृत्ति से यदि विवेच्य विषय का शझ्धिक स्पष्टीकरण होता है तो वह छ्षम्य श्र सहा है । ऐसी परिस्थिति में श्रप्निम मागों में पूर्वादत्ति का उल्लेख करना श्रावश्यक होगा | अंत में संपादक का यदद सुखद और पवित्र क्रतंव्य है कि वह उन सभी व्यक्तियों के प्रति श्राभार प्रदर्शित करे जिनकी प्रेरणा; सहयोग श्रौर परामर्श से इस भाग का प्रणुयन संभव हो सका । सर्वप्रथम दिवंगत डा० श्रमरनाथ भा ( सूतपूर्व समापति; नागरीप्रचारिणी सभा ) का श्रद्धापूवंक स्मरण दो श्राता है जिनकी प्रेरणा इस इतिहास की पूर्ण योजना के साथ थी । दुःख दै कि इस समय वे संसार में नहीं हैं; किंतु इस भाग के प्रकाशन तथा संपू्ण॑ योजना की पूर्ति से उनके श्रात्मा को संतोष होगा । इस योजना के संपादकमंडल से भी समय समय पर परामशं मिलता रहा, लिनके लिये इम उसके श्राभारी हैं । इस भाग के लेखक, संपादक के झतिरिक्त, डा० भोलाशंकर व्यास; प्रो० बलदेव उपाध्याय श्रौर ढा० भगवतशरणु उपाध्याय के सामयिक श्रौर द्वार्दिक सहयोग के बिना यह कार्य नहीं संपन्न होता । मैं उनके प्रति पर्याप्त ऊतज्ञता नहीं प्रकट कर सकता । संपूर्ण योजना को श्रौर प्रस्तुत इस माग को व्यवस्था-संपादंक भी बेजनाथ सिंद ' विनोद” की कार्य- कुशलता से बराबर सद्दायता मिलती रही । वे भी मारी कृतश्ता के पान्र हैं । थी शंसुनाथ वाजपेयी, सहायक मंत्री, नागरीप्रचारिणी सभा; से प्रूफ संशोधन श्रीर सभा की वर्तनी के पालन में पूर्ण साहाय्य प्राप्त हुझ्ा । उनका मैं हार्दिक धन्यवाद करता हूँ । प्रेस कापी तैयार करने में श्री मंगलनाय सिंद तथा श्री श्रजयमित्र शास्री ने मेरी रुद्दायता की जिसके लिये में उनका झृतद् हूँ । थी रघुनाथ गोविंद चासकर ने सद्दायक प्र॑यसूची तथा अनुकमशिुका बड़ी लगन श्रौर तत्परता से तैयार की | दे




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