श्रीकृष्ण - अवतार भाग - १ | Srikrishn - Avatar Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) कुष्णुचरित को बिगाड़ बैठते हैं । फिर छुष्णचरित पर सिस मैं भी उनकी बाठलीढाओं परं नाटक ठिखना तो और भी टेढ़ी खीर है। आजकढ की जमता नाटक में जेसी स्वाभाविकता और चरित्र का आदशे देखना चाहती है उसका लिनीह भगवान्‌ कृष्ण के बाउ-न्चरित की घटनांओं में कैसे किया जा सके ? वस्तुत्त कवि के आगे यदद एक उठझन थी किन्तु कंविरत्न जी से कई जगद इस उठझन को जिस तरह सुखझाया है-उसे देख कर उनकी प्रतिभा को भरि भरि प्रशंसा मुख से निकछ पढ़ती है । छुष्णचरिंत को पुराणसिद्ध क्रमभी आपने- नहीं बिगाड़ा और अस्वाभाविकतता को थी यथाशक्ति वचाया-यह नाटक में कमाल है। सन से पहले जन्म की घटना ही लीजिये ।- श्रीभ।गवत में जिखा है--भगवान्‌ इष्ण ने ( ग्मवास के समय ). सामान्य जीवों की सरद वसुदेव के शारीर धातुओं में व देवको माता के उदर में निवास नदीं किया किन्ठु वे उनके सन में निवास करते रहे के । समय पर बन अपने अठौकिक-चतुभज दिव्याभरणभूषित दिव्यशस्त्रसलित रूप से प्रकट होते हैं और फिर चसुदेव दवकी की प्रार्थना पर प्राकृत शिशु बन जाते हैं आदि । इस अलीकिक घटना को कवि ने ( प्ृ० ५९-६६ में ) प्रथमाह् के अष्टम दृश्य में क्रेसी उत्तमता से स्वाभाविक रूप दिया है देबकी कारागार में गा रददी है-- नि्ठ के प्राण पुकार रददे जगदीदा हरे जगदोश दर आदि ( बहुत उत्तम मार्मिक .. के आआविवेशांशमागेन सन आनकवुन्दुसे । ( श्रीमारा० १० सक० ० ३8 ) ततो जगन्मज्लमध्युतांश समाहित शूरसुतेन देवी । दुधार शर्वात्मकमात्यूत काटा यथानन्देकरं सनस्तः । ( श्ढो इस )




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