दयानंद कुतर्क तिमिरतरणि | Dayanand Kutark Timir Tarani
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.97 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जसवंतराय जैनी - Jaswant Rai Jainy
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ ) तुम्यं नमुस्त्रिजगतः परमेश्वराय ठुम्य नमां इंजन भवादाधशाषणाय ॥३॥। और भी लाखों श्छोक ईश्वरस्तुति के हैं यदि जेनी ईश्वर को न मानते तो स्तुति किस की करते हैं अत स्वामीजी का यद लिखना कि जैनी ईश्वर को नहीं मानते उजाड़ में रोने समान होने से कौन सुनता है । फिर स्त्रामीजी लिखते हैं कि बोद्ध और जेनी छोग सतभड़ी और स्याद्राद को मानते ६ यहभी स्वामीजी की अज्ञानता का सूचक हे-क्योंकि वोद्ध ठोग सप्तभज्ी और स्याद्राद को नहीं मानते हैं स्वामीजी का लेख तव सय होसकता है जब्र उनका कोई अनुयायी सप्त भड़्ी और स्थाद्वाद को मानना वोद्धघर्म के किसी प्रमाणिक ग्रन्थ से सिद्ध कर दे । फिर स्वापीजी ने बिना समझे सोचे सप्तभंगी के ख़ढन का प्रयात्त किया है सो सर्वथा निष्फल दी है केवल रंडी रोने से दाकराचार्य जैसे जो एको ब्रह्म ट्वितीयों नाखि की रा मारते थे बह सपतमंगी का यथाथ स्वरूप न समझ सके तो आपके स्वरमी जी की क्या दाकि जो इस अगाधतलस््रूप को समझ सकें खण्डन तो दूर रहा-यदि आपको वा अन्य किसी तत्त्वानुगवेषों को जनों की सप्तभट्ठी ओर स्याद्वाद के स्वरूप का समझने की इच्छा हो तो श्रीविभलदासजी छत सप्तभड़- तरड्िणी जो नवीन न्याय है पढ़ लेवे यदि संस्कृत न जानता दो तो न्यायांभोनिधि तपगच्छाचाय श्रीमद्रिजयानन्द सूरि प्रतिद्ध श्रीआत्माराम जी महाराजविरचित तत्वनिर्णयमासाद ग्रन्थ का पदु्रियात ( २६ वां ) स्थम्भ पढ़कर देखे इसमें शड्राचार्य कृत सप्पड्ी के खण्डन का ख़ण्डन सविखर है उस से विदित होजाविंगा कि विचारे स्वामीजी का बिना विचारा ही सर्व
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