मोक्षमार्ग की सच्ची कहानिया | Mokshamarg Ki Sachchi Kahaniya

Mokshmarg Ki Sachi Kahaniya by बुद्धिलाल श्रावक - Buddhilal Shravak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हू] सांक्षित बह्मानी पघारे हैं सब बस्तीके लोग उनकी पूनाको नाने कगे | यहां तक कि राना वरुण और भव्यसेन भी उस बनावटीं त्रह्माकी पूजाको गये और रानी रेवतीसे भी कहा । रानीने उत्तर दिया कि वह साचा घह्मा नदी है कोई मायावी देव होगा । दूसरे दिन वे शुछकजी दक्षिण दिशाकी ओर इंख चक्र गदा तलवार आदि छेकर चतुमुन विष्णु बनके गरुइपर बेठ गये । पहलेके समान सब लोग बैंदनाकों गये पर रानी रेवतीने उत्तर दिया कि जैन अन्थोंमें नव नारायण कहे हैं | अब दसवां होना संभव ही नहीं है। तीसरे दिन झुकककनी पश्चिम दिशाकी ओर माधेमें नठा दारीरमें राख लगाके झंकरका रूप बनाके वैलपर बेठ गये । सब ही लोग द्शनोंको गये पर रानी रेवतीने कहा कि रन शास्रमें ग्यारह रुद्र कहे हैं सो हो झुंके अब बारहवां होना असंभव है । ः . सतमें झुछकनीने अपनी विदयाके बलसे उत्तरकी ओर झूठा समवदयरण रचा । मानस्तंभ गंघकुटी आदि बनाये | बनावटी इन्द्र गणघर मुनि और बारह समा्ोंकी रचना की और आप महावीर भगवान बनकर दिव्यष्वनि करने लगे । अब तो छोगोंकी भक्तिका ठिकाना नहीं रहा । लोगोंको पूरा विश्वास हो गया था कि सत्र रेवती रानी अवदय ही दर्शनोंको नावेगी और सबने खूब समझाया भी था । परन्तु वह जानती थी कि चौवीस तीकर होना थे सो हो गये । अब पर्चीसदां क्यो कर संभव है इसलिये वह बहां भी नहीं गई 1 सुछकनों ने जत्र




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