मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिंतन | Mangal Mantra Namokar : Ak Anuchintan
श्रेणी : मंत्र / Mantras
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.52 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अयोध्याप्रसाद गोयलीय - Ayodhyaprasad Goyaliya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मज्गलमन्त्र णमोकार : एक झनुचिन्तन १६.
सापेक्षव्वनि चाहक, सहयोग या सयोग द्वारा विलक्षण कार्य साधक, आत्मों-
्तिसे शूत्य, रुद्रवीजेंका जनक, भयंकर श्र बीभत्स कार्योके लिए, भी
प्रयुक्त दोनेपर कार्य साधक ।
स--स्व समीहित साभक, सभी प्रकारके बीजोमे प्रयोग योग्य, शान्तिके
लिए. परम आवश्यक, पोष्टिक कार्योके लिए परम उपयोगी, जानावारणीय-
दर्शनावरणीय द्रादि कार्योका विनाशक, क्लींवीजका सहयोगी, कामत्रीजका
उत्पादक, श्रात्मसूचक तर दर्शक ।
हृन्-शान्ति, पौष्टिक श्रौर माज्जलिक कार्योका उत्पादक, साघनाके लिए;
परमोपयोगी, स्वतन्त्र श्रौर सहयोगापेक्षी, लकच्ष्मीकी उत्पत्तिमे साधक, सन्तान
पात्तिके लिए, श्नुस्वार युक्त होनेपर जाप्यस सहायक, श्राकाशमे तत्त्व युक्त,
कर्मनाशक, सभी प्रकारके बीजोका जनक ।
उपर्युक्त व्वनियोके विश्लेषणसे स्पष्ट है कि मातूका मन्त्र ध्वनियोकि
स्वर श्र व्यन्जनेकि सयोगसे ही समस्त बीजाक्रोंकी उत्पत्ति हुई है तथा
इन मातृका ध्वनियोकी शक्ति ही मन्त्रोपें आती है । णमोकार मन्त्रसे ही
मातृका '्वनियों निःसत हैं। अतः समस्त मन्न्शास्र इसी महामन्त्रसे
प्रादुर्भूत हैं । इस विपयपर अनुचिन्तनसै विस्तारपूर्वक विचार किया गया है ।
यतः यद्द युग विचार श्र तर्क का है, मात्र भावनासे किसी भी बातकी सिद्धि
नहीं मानी जा सकती है । भावनाका प्रादुर्मभाव भी तक श्र विचार द्वारा
श्रद्धा उत्पन्न होनेपर होता है। श्रतः णमोकार महामन्त्रपर श्रद्धा उत्पन्न
करनेके लिए, उक्त विचार श्रावश्यक है ।
दार्शनिक इृष्टिसि इस मन्न्रकी सोरव-गरिमाका विवेचन भी अनुचिन्तन में
किया बा चुका है | च्िन्तनकी झपनी टिशा है, वह कहाँ तक सही है, यह
तो विचारशील पाठक ही श्रवगत कर सकेंगे । इस अनुचिन्तनके लिखनेमे
कई प्राचीन तर नवीन श्रात्वार्योकी र्चनाओका मैंने उपयोग किया है,
ता मैं उन सभी आाचार्यों श्र लेखकोका आ्ाभारी हूँ । श्री जैनसिद्धान्त-
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