सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका खंड 1 | Samyag Gyan Chandrika Khand - I

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Samyag Gyan Chandrika Khand - I  by यशपाल जैन - Yashpal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्पग्ञानचन्दरिका पीडिका ] दे ह बहुरि कोऊ कहै कि इस कायें विषे विशेष हित हो है सो सत्य, परंतु मंदबुद्धि ते कही की अन्यथा झर्थ लिखिए, तहा महत्‌ पाप उपजने ते श्रहित भी तो होइ ? ताक कह्ए है - यथायथ॑ सर्व पदार्थनि का ज्ञाता तौ केवली भगवान है । शरनि के ज्ञानावरण का क्षयोपशम के भ्रनुसारी ज्ञान है, तिनिकौ कोई श्र्थ श्रन्यथा भी प्रतिभासै, परंतु जिनदेव का ऐसा उपदेश है - कुदेव, कुगुरु, कुशास्त्रनि के वचन की प्रतीति करि वा हठ करि वा क्रोध, मान, माया, लोभ करि वा हास्य, भयादिक करि जो अन्यथा श्रद्धान करे वा उपदेश देइ, सो महापापी है । श्रर विशेष ज्ञानवान गुरु के निमित्त बिना, वा अपने विशेष क्षयोपशम बिना कोई सूक्ष्म अर्थ श्रन्यथा प्रतिभासे श्र यह ऐसा जाने कि जिनदेव का उपदेश ऐसे ही है, ऐसा जानि कोई सुक्ष्म अर्थ कौ अन्यथा श्रद्ध है वा उपदेश दे तौ याकौ महत पाप न होइ । सोइ इस प्रंथ विषे भी आ्राचाये करि कहा है - सम्माइट्ठी जीवो, उबइट्ठं पवयणं तु सद्दहदि । सद्दहदि श्रसब्भाव॑, झजारमाणों गुरुखियोगा ।1२७।। जीवकाड ।! बहुरि कोऊ कहै कि - तुम विशेष ज्ञानी ते प्रंथ का यथाथं सर्वे श्रर्थ का निर्णय करि टीका करने का प्रारंभ क्यों न कीया ? ताकी कहिये है - काल दोष ते केवली, श्रुतकेवली का तौ इहां अ्रभाव ही भया। बहुरि विशेष ज्ञानी भी विरले पाइए । जो कोई है. तो टूरि क्षेत्र विष है, तिनिका संयोग दुर्लभ । भर श्रायु, बुद्धि, बल, पराक्रम श्रादि तुच्छ रहि गए । ताते जो बन्या सो श्रर्थ का निर्णय कीया, अवशेष जैसे है तैसे प्रमाण हैं । बहुरि कोऊ कहै कि - तुम कही सो सत्य, परतु इस अथ विषे जो चूक होइगी, ताके शुद्ध होने का किछू उपाय भी है ? ताकौ कहिये है - एक उपाय यह कीजिए है - जो विशेष ज्ञानवान पुरुपनि का प्रत्यक्ष तो सयोग नाही, ताते परोक्ष ही तिनिस्यो ऐसी बीनती करौ हो कि मै मंद बुद्धि हो, विशेषज्ञान रहित ही, श्रविवेकी ह; शब्द, न्याय, गणित, घामिक झ्रादि ग्रथनि का विशेष अभ्यास मेरे नाही है, ताते शक्ति्टीन हौ, तथापि धर्मानुराग के वश ते टीका वारने का विचार कीया, सो या विषे जहा-जहा चूक हो, भ्रन्यथा झर्थ होइ, तहां-तहां मेरे ऊपरि क्षमा करि तिस भ्रन्यथा अर्थ कौ दूरि करि यथा भ्र्थ लिखना । ऐसे विनती करि जो चूक होइगी, ताके शुद्ध होने का उपाय कीया है । बहुरि कोऊ कहै कि तुम टीका करनी विचारी सो तौ भला कीया, परंतु ऐसे महान ग्रंथनि की टीका सस्कृत ही चाहिये । भाषा विष याकी गभीरता भास नाहां ।




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