आत्मा - संयम | Aatma - Sanyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.12 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७)
की एक नई और उच्चतर आसक्ति की शक्ति है। कोइ भी
व्यक्ति अधिक समय तक घुराइयो से दूर नहीं रद सकता जा
सद्चचारो में लिप्त नही रहता, खाली हृदय शैतान का कारखाना
है, किन्तु स्वर्गीय वस्तुओं मे लिप्त रदने वाले मस्तिष्क मे उसके
लिए स्थान नहद्दी होता ।
विचारों के संयम के लिए मनुष्य को भगवान ने बुद्धि का
बल दिया है। इन्द्रियो के निरोध के लिए भी बुद्धि ही को
शास्रकारो ने प्रवल झ्रस्त्र वित्त किया है। भगवान कृष्ण गीता
मे कहते हैं*-- हर
इन्द्रियाखि पराण्याहुरिन्ट्रियेभ्यः पर सन ।
मनसस्तु परा बुद्धियीं बुद्ध: परतस्तु स ॥. --
एवं बुद्ध: पर बुद्दवा सस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रु, मद्दाबाहों कामरूप दुरासदम् ॥ '
“इन्द्िया प्रबल कहलाती है, इन्द्रियो से प्रबल मन ' है, मन
से अबल बुद्धि है । और बुद्धि से प्रबल वह ( आत्मा ) है। हे
महाबाहु झाजुन, इस प्रकार बुद्धि से प्रबल आत्मा को जानकर
श्औौर आत्मा से झपने को वश में करके दुजय काम ( कामना.
विषय वासना ) रूपी शा को मार ।”
यतेन्द्रियमनोबुद्धिमुनिर्ोक्तिपरायण. ।
विगतेच्छाभय-क्रोघो य. सदा मुक्त एव स ॥।
“इन्द्रिय, मन, बुद्धि को जीते हुए श्ौर काम कोघ, भय
को दूर किए हुए जो मोक्ष परायण मुनि है वह सदा मुक्त ही है ।”
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