पाश्चात्य काव्यशास्त्र | Paschatya Kavyashastra

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Paschatya Kavyashastra by डॉ. कृष्णदेव शर्मा - Dr. Krishandev Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हर कुछ अधिफ नही दे सकती थी जो प्रकृति देती है। पर तथ्य यह दे वि हम क्िता का. आस्वादन इसलिए करते हैं क्योकि वह हमें बढ प्रदान फरती है जा प्रकृति नहीं दे सबत्ती 1 बस्तुत कलाकार अपनी संवेदना और अनुभूति से अपूर्णता यो पूर्णता प्रदान करता है और उसे आदर्श रूप देना हैं 4 अत अनुकरण या मात्र नकल नहीं कहा जा सवा । अवुकरण के आधार पर ही अरस्तू चासदी में छठ बग मानहें हा नथानके चरिन पद-रचता विचार-तरव हृश्यनविधान और गीत । इनमें से दो अनुकरण के माध्यम हैं एक भनुकरण की विधि तथा शेप छीन अनुकरण के बिपय । यहीं पर इतिहासकार और वि का भेद भी स्पप्ट हो जाता है । इतिहासवार तो उसका वणन करता है जो घटिन हो चुवा है और वि उसका चर्णेन वरता है जो घटित हो सकता है। इसलिए पाव्य का रूप अपेक्षाहत गधिय भव्य है 1 अनुवाय ये सम्बन्ध में अरस्तू या मत हैं कि कवि का अनुकाय इन तीन प्रकार वी. वस्तुओ में स एक होगा--जैंसी वे थी या है जैसी वे कही या समझी जाती हैं अथवा जैसी दे होनी चाहिए । स्पप्ट रूम से भरस्तू काव्य का विपय प्रकृति वे प्रतीयमान सम्भाव्य और आदेश रूप को मानते हू । इस तरहू यरस्तू के अनुसार काव्य में निश्चित तीर पर कवि की भावना और बल्पना का याग रहना है 1 अनुकरण को अधिया--इसये सम्बंध में अरस्तू ने अधिक नहीं लिखा हैं फिर भी जो कुछ पिया है इससे इस पर पर्याप्त प्रकाश पढ़ जाता है 1 उनका स्पप्ट क्यन है वि कवि दस्तुओ का उनके यथास्थित रूप में वणन सही बरता सरनु उनके युक्तियुक्त रूप में वर्णन गरता है । रुलावार वा यह बत्तव्य हैं वि वह सुल वस्तु में स्थित प्राहृतिय उपयुक्तता तथा सत्य यो ही प्रेपित करने को प्रयत्न न करे अपने कलानमाध्यम के अनुरूप आवश्यक तथा सम्भावित का भी प्रेपण बरे । इसलिए उन्होंने सिखा हैं. फिट स्फइनजापिए 15 गए फापिमणड 0 घाा छटण्ाघावदाछू ए055- छाेष




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