मध्यमा दिग्दर्शन | Madhyama Digdarshan

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Madhyama Digdarshan by डॉ. कृष्णदेव शर्मा - Dr. Krishandev Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ | मध्यमा दिग्दशन में कृष्णा भगवान्‌ के लिए प्रयुक्त माना जाता चाहिए । यद्यपि ये विरक्त भाव ये वन्दावन जाकर रहै तो भी इनकी मधिकांण कविता श्युगारिक दी ह । लौकिक [ प्रेम की दीक्षा पाकर ही ये पीछे भगवद-भक्ति में लीन हुए । प्रेम दशा की व्यंजना ही इनका अपना क्षेत्र हैं। प्रेम की गढ़ अस्तदशा का उद्घाटन जैसा इन्होंने किया है, वह हिन्दी साहित्य में अन्यत्र दुलभ है। प्रेम की अभिवंचनीयता का आभास घनानन्द ने विरोधाभासों के द्वारा दिया है। उनके विरोधमूलक वैचित्य की प्रवृत्ति का यही कारण है | संयोग और वियोग श्र गार में इनकी दृष्टि वियोग की अन्तर्दशाओं पर ही अधिक रमी है । सतःइनके ` वियोग सम्बन्धी पद ही साहित्य में विशेष प्रसिद्ध हैं। इनका वियोग॑-वर्णन भी आंतरिक बनुभ्रूति से परिष्याप्त है, उसमें बाह्न प्रतिक्रिया कुछ नहीं । उनकी भाषा उनके विचारों गौर मान्तरिक अनुभूति का भार वहन कसमै मे पूर्णतः समथं है, इससे उनका व्रजभापा पर्‌ अचूक अधिकार लक्षित होता . है “भाषा की पूर्व अजित शक्ति से ही काम न चलाकर इन्होंने उसे अपनी. ' ओर से नई शक्ति प्रदान की है (” . « घत्तानन्द की कविता में भावपक्ष और कलापक्ष दोनों समान रूप से परि- पुष्ट हैं। भाषा के सीष्ठव के विषय में ऊपर कहा जा चुका है। उन्होंने अपने काव्य मेँ वस्तु-वणेन कौ अधिक महत्व न देकर भावन्यंजना को ही प्रधानता प्रदान की है ! उनकी इष्टि नायिका के पाथिव शरीर पर नहीं टिकी, अपितु उन्होने नायिका के हृदय को परखने का सफ़ल प्रयास किया है श्छगार ' रस में नायिका के हृदय की विविध दशाओं के चित्रण में उन्हें अधिक सफलता मिली है। घनानन्द का प्रेम-मागं विलकरुल सीधा गौर सरल है, उसमें किसी प्रकार का छल-कपट या चातुयं नहीं है-- अति सूधो सनेह को मारग है, जहाँ नेकु सयानप वाँक नहीं । तहेँ साँची चलें तजि आनुन पौ झिझकी कपटी जे निर्सांक नहीं ।। ` `, घतानन्द के प्रेम-मार्ग के समान इनकी काव्य-शैली भी न॑सरगिक জীব, লী लिए हुए है; उसमें रीतिकालीन अन्य कवियों की सी रचना-चातुरी या वचन- वक्ता का अभाव है। सरस, शुद्ध और समर्थ भाषा में हृदय की अनुभूतियों को स्वाभाविक ढंगसे अभिव्यक्त करना ही इनका घ्येय है । एक उदाहरण देखिए-- तव्‌, तौ छवि पीवत जीवत्त द, जव सोचत लोचन जात.भरे 1 दित पोप के तोष सु प्रान. पले, विललात महादुख-दोप भरे । ~+




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