बड़ा भाई | Bada Bhai

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Bada Bhai by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चतुथपरिच्छेद। .. ”.... (३५) मरूँ 'तेरी सौत मरे. और मेरे मरने पर तेरे काका का व्याह होंगा अरे उस बुढ़वा को भा कौन पूँछेगा!'? . युवती ने हँसकर कहा-“” काकानी हमारे कुढीन हैं उन के वास्ते कन्या बहुत मिटेंगी । में उन्हीं के जोड़ की खोंन दूँगी !' रेखाने वास्तबिंक कोंध मगट करके कहा-““अरे तब तो में पिशा- चनी होकर उसी के कपारपर बैठ जाउँगी |” रेखा दीदी की यह बात सुनकर सब हँस पड़ीं, किन्तु नगन्नाथ के मन में बड़ी शड्डा हुईं । खियों में सोत का ऐसा विद्वेष देखकर नगन्नाथ व्याकुछ हो उठें. मन में सोचने छगे-ख़ियोंमें मरनेपर भी इस तरह सोत का वैमनस्य मबढ रहता हैं !”? इधर ऐसीही बातों में सबेरा होते देख कर गाना जाननेवाछी खियँ अधीर हो पड़ीं । उनका बडी श्रद्धा औ पारिश्रम का चुना और याद किया हुआ गीत आजामिट्टी होने चढा । निदान उनमें काना फुसी कर के यह मस्ताव पास दहोगया कि बरके गाने की अपेक्षा न कर के रमणी मण्डछ से ही गीत प्रारम्भ हो । अब क्या देखतेही- देखते कोहबर मानों नींविस्टी थिएटर का रड़मश्व हो उठा, गात- तान और उनका थिरकना देखकर जगन्नाथ अबाक होगये । उन थिए्रों में दशक और दर्शिका गण नाटक देखने जाकर और का चृस्य देखते हैं यहाँ दशक और दूर्शिकाही बर के आंगे थिरक थिरक अपना गुण दिखाने छमीं। रात बीत गयी, संबरा हुआ, किन्तु इन गान पिय रमणियों की तृप्ति नहीं हुई. चतुथे परिच्छेद । दूसरे दिन सबेरे आठ बने नव पारिणीता खी सहित जगन्नाथ अपने घर को चढे और उचित समयपर आ पहुँचे बाठक विश्वम्भर बैठे २ मा की मतीक्षा कर रहाथा.पिता का आना सुन दौड़कर बाहर दुरवाने पर आ खड़ा हुआ. पिता को “सवारीपर देखकर आप भी उसपर जा पहुँचा और कहने ठगा-“बाबा मा कहाँ है,”




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