मनुष्य शरीर की श्रेष्ठता | Manushya Sharir Ki Shreshthata
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.51 MB
कुल पष्ठ :
70
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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श्रष्तित गिरि समस्यात् फज्जलं सिन्धु पात्रे
सुरतरू चर शासा लेयनी पत्र सुर्व्वी ।
लिसति यदि यृदीत्या शारदा सर्व काले,
तद॒पिं तय गुणाना मीश पार ने याति ॥|
यदद तो हुआ प्रकृति देवी का शुण गान | आइये अब इस
सय लोग टैत्य देवता मिलकर समुद्र सथें 'और झपनी फरुपना
रूपी मथानी द्वारा सबसे पदले उन घड़े-्वड़े पीछे-पीले सपंजों में
से; जो कि समुद्र की तह में दपादप चमक रहे हैं किसी एक को
निकालें 'और उसके दर एक भाग का भली माँ ति निरीक्षण करें ।
तव तो ज्ञात दो जायगा कि यद्द एक जालीदार वस्तु है जो कि
एक लसदार पदाथ से ढकी हुई है। परन्तु दमारा आपका
निरीक्षण ठीक नहीं; क्योंकि चास्तव में लसदार पदार्थ दी यथार्थ
स्पज है । और जिसे इम लोग स्प समसे बैठे हैं व तो केवल
इसका मात्र है।
प्राणी वगे में यदद॒स्पज सबसे श्लुद्र जीव है । इसमे फेवल
एक दी प्रकार का पदाथे है । और इसकी धनावट क्या पिद्दी
क्या पिद्दी का शोरवा--नाम मात्र के दी लिये है। परन्तु फिर
भी भाप इसे जड पदाथ नहीं कद सकते । यदद खाता है; सॉँघर
लेता है, अनुभव करता है 'और मूल रूप मे चेतन पदार्थ के
सभी लक्षण दिखलाता है ।
अगर मलन्ुप्य शरीर के गत इतिहास का पता लगाया जाय
और इसके प्रारम्भिक भर्तित्व का अन्वेपण किया जाय तो
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