मनुष्य शरीर की श्रेष्ठता | Manushya Sharir Ki Shreshthata

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Manushya Sharir Ki Shreshthata by देवीप्रसाद खत्री - Devi Prasad Khatri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हरे ) श्रष्तित गिरि समस्यात्‌ फज्जलं सिन्धु पात्रे सुरतरू चर शासा लेयनी पत्र सुर्व्वी । लिसति यदि यृदीत्या शारदा सर्व काले, तद॒पिं तय गुणाना मीश पार ने याति ॥| यदद तो हुआ प्रकृति देवी का शुण गान | आइये अब इस सय लोग टैत्य देवता मिलकर समुद्र सथें 'और झपनी फरुपना रूपी मथानी द्वारा सबसे पदले उन घड़े-्वड़े पीछे-पीले सपंजों में से; जो कि समुद्र की तह में दपादप चमक रहे हैं किसी एक को निकालें 'और उसके दर एक भाग का भली माँ ति निरीक्षण करें । तव तो ज्ञात दो जायगा कि यद्द एक जालीदार वस्तु है जो कि एक लसदार पदाथ से ढकी हुई है। परन्तु दमारा आपका निरीक्षण ठीक नहीं; क्योंकि चास्तव में लसदार पदार्थ दी यथार्थ स्पज है । और जिसे इम लोग स्प समसे बैठे हैं व तो केवल इसका मात्र है। प्राणी वगे में यदद॒स्पज सबसे श्लुद्र जीव है । इसमे फेवल एक दी प्रकार का पदाथे है । और इसकी धनावट क्या पिद्दी क्या पिद्दी का शोरवा--नाम मात्र के दी लिये है। परन्तु फिर भी भाप इसे जड पदाथ नहीं कद सकते । यदद खाता है; सॉँघर लेता है, अनुभव करता है 'और मूल रूप मे चेतन पदार्थ के सभी लक्षण दिखलाता है । अगर मलन्ुप्य शरीर के गत इतिहास का पता लगाया जाय और इसके प्रारम्भिक भर्तित्व का अन्वेपण किया जाय तो




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