चौथा कर्मग्रंथ | Chaoutha Karamgranth

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Book Image : चौथा कर्मग्रंथ - Chaoutha Karamgranth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ र कारण था | उक्त सेंठकी धार्मिकताका परिचय तो उनकी जेन धार्मिक परीक्षाकी इनामी योजनासे जैन खमाजकों मिछ दी 'चुका दे, जो उन्होंने अपने पिता सेठ अमरचन्द तछकचन्दके स्मरणार्थ की थी । उक्त सेठसे जैन समाजको बढ़ी आशा थी, पर वे पेंतीस बे -जितनी छोटी दन्नमें दी अपना काय करके इस दुनियासे चछ बसे । सेठ हेमचन्द भाईके स्थानमें उनके पुत्र नरोत्तमदास भाईके ऊपर लोगों - की दृष्टि ठहरी थी, पर यद्द बात करा काछकों मान्य न थी। इस- छिये उसने उनका भी बाइंस बषे-जितनी छोटी दम्रमें दी अपना अतिथि बना लिया । निःसन्देद्द ऐसे दोनदार व्यक्तियों की कमी बहुत खटकती है, पर दैवको गतिके सामने किसका उपाय ! ढाई सौ रुपयेकी मदद वसाई निवासी सेठ दीपचन्दू तढाजी सादडीवाछने प्रवतक श्रीकान्तिबिजयजी महाराजकी प्रेरणासे दी दे । इस्रकेछिये वे भी मण्डलकी ओरसे घन्यवादके भागी हैं । दो सौ रुपयेकी रक़म अहमदाबादवाले खेठ हीराचन्द ककलक यहीं निन्नतिखित तीन व्यक्तियोंकी जमा थी, जो सन्मित्र कपूराविज प- जी मद्दाराजकी अ्ररणासे मण्डढको मिछी। इसढिये इन तीन व्यक्तियों वी बदारताकों भी मण्डल कृतज्ञतापूबेक स्वीकार करता दूं । १. कच्छवाछे सठ आदयढी आाजी मवानजी रु० १०० (साध्वीजी गुणश्रीजके संसारी पुत्र) रे. श्रीमती गंगाबाई रु० ५० (अहमदाबादव।ले सेठ छाठभाईकी माता, ३. श्रीमती श्गारबाइ द० ५० (अदमदाबादवाढे सेठ उमा भाई इठीसेंगकी विधवा)




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