असली इंसान | Asali Insan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.91 MB
कुल पष्ठ :
536
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काम ने ही तो मुझे अपने इदे-गिद॑ के जीते-जागते इन्सानो मे नयी श्रौर
सच्ची साम्यवादी विशेपताये खोजने की शिक्षा दी है। “प्राव्दा' के
युद्ध-सम्बाददाता के रूप में मैं महान मोर्चे के प्रमुख हिस्सों मे रहा। यह्दी
मेरी समाजवादी धरती की किस्मत का फैसला हो रहा था। मेरे लिए
यहा अमूल्य सामग्री के खजाने खुले पढे थे।
श्राज यह बात बहुत लोग जानते है कि “'झ्रसली इन्सान ' श्ौर
हम -सोवियत्त लोग' नामक पुस्तकों के पात्र वास्तविक श्रौर जीते-
जागते लोग है। वे श्रपने श्रसली या कुछ बदले हुए नामों के साथ इन
पुस्तकों में पाठकों के सामने भाये है। 'प्राव्दा' के कार्यालय में ही ये
पुस्तके लिखने का विचार मेरे मन मे आया था। बात कुछ इस तरह
हुई थी।
फरवरी १९४२ मे “प्राव्दा' मे मेरी एक रिपोर्ट छपी । शीर्षक
था-' मात्वेई कुज्मीन की दिलेरी'। यह रिपोर्ट मैने कुज्मीन के दफनाये
जाने के फौरन बाद कब्रिस्तान से घर लौटकर जल्दी-जल्दी लिखी थी।
कुज्मीन पढुन्ना उगानेवाले ' रास्स्वेत' सामूहिक फामे का झस्सी वर्पीय
सामूहिक किसान था। उसने श्रपनी बहादुरी भौर दिलेरी से इवान
सुसानिन की याद ताजी कर दी थी। यह महत्त्वपुर्ण घटना मैने जैसे कि
पचाये बिना ध्ौर भद्दे ढंग से उगल दी थी। जैसे ही मै मोर्चे से मास्को
लौटा कि प्रधान-सम्पादक ने मुझे बुलवा भेजा । प्रघान-सम्पादक ने मुझे
बताया कि इतनी महत्त्वपूर्ण घटना को, वीरता की उस श्रमर कहानी
को मैने बहुत जल्दी-जल्दी भ्रौर एक नौसिखिये की तरह घसीट डाला है ।
“इसे एक सुन्दर कहानी की शक्ल दी जा सकती थी ! ” सम्पादक
ने मुझे फटकारा। हर चीज को व्यापक बनाने की श्रपनी श्रादत के
भ्नुसार सम्पादक ने मुझसे कहा. “मै युद्ध के अन्य सम्बाददाताशों से
कह चुका हू और भव तुमसे भी यह कह रहा हू-हमारे लोग ख़ास
बहादुरी के जो भी कारनामे करे, उनकी कहानी विस्तार में लिखी
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