बापू - कथा | Bapu - Katha
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.98 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।
विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन् १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन् १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन् १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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१. नया नेतूतंबुं, नया युग
न शय न
(१९१६). ५५ ,
“तम्सवामि युगे युगे । -गीता व
( मैं युग-युगमे आता हूँ )
शलषणे क्षणे यन्वतामुर्पति ।'
( जो हर क्षणमे नवीनता प्राप्त करता है। )
आमतौरपर माना जाता है कि नागपुर-काग्रेससे भारतके इतिहासमे एक नया
युग शुरू हुआ । परन्तु यह ऊपरसे दीख़नेकी वात है। वास्तवमे तो नये यूगकी
शुरुआत, की दिन गाघीजीने इस देशक्रे साव॑जविक जीवनमे प्रवेश किया, तमीसे
गयी थी ।
हे इस क्षेत्र वापूके कदम रखते ही मारतमे मनुष्यका सारा जीवन-दर्शन ही
बदल गया । सम्यताकी नयी परिमादा पैदा हो गयी । सावंजनिक सेवा और
नेतृत्वका तरीका वदल गया, और परिचमी सम्यताकों जहाँ आदर्श माना जाता
था, वहाँ उसकी मिथ्या प्रतिष्ठाकी कलई खुल गयी और भारतीयताको आदरकी
दृष्टिसि देखा जाने लगा।
.. शग्रेजी बोलना मतिप्ठाकी वात मानी जाती थी । पढ़ें-छिल्ले छोग अपनी मातृ-
माषामे पत्र लिखनेके वजाय घरके लोगोको भी अग्रेजीमे ही पत्र लिखनेमे गोरव
और घन्यता मानते थे । गाधीजीने इस सारे कमको एकदम बदल दिया ।
विदेश-याश्नापर जो लोग जाते, वे पुरे विदेशी वनकर स्वदेश लौटते थे ।
गाधीजीने ठीक इससे उलटा किया । वे जहाजते उतरे तो अपने स्वदेगी--उ5
काठियावाडी--लिवासभे । वम्बईमे और जहाँ-जहाँ मी उनका स्वागत हुआ,
उमका उत्तर उन्होंने गुजराती या. हिन्दीमें दिया । विदेश-यात्राको समाज पाय
मानता था । अत समाजकी नही, पिता-समान वडे माईकी आज्ञा मानकर नासिकने
जाकर अपनी शुद्धि मी कर ली । यो समाजसे तो आजन्म वाहर हो रहे ।
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