बिहारी की वाग्विभूति | Bihari Ki Vagvibhuti

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Bihari Ki Vagvibhuti by विश्वनाथप्रसाद मिश्र - Vishvanath Prasad Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हे बिहारी का विवाह भी मथुरा में ही किसी साथुर ज्राह्मण के यहाँ संपन्न हुआ | विवाद होने के पश्चातू ये अपनी ससुराल में ही रहने लगे । उसी समय के लगभग सं० १६७४ शाइजहाँ बृंदावन गया था । उसने लोकबिश्रत नरदरिरासजी के दशंन किए । शाहजडाँ के समक्ष दोनदार बिड्ारी की सद्दार्दाजों ने प्रशंसा की । इनकी प्रतिमा देखकर शाहुजडा ने इन्हें छागरैे में आकर रहने के लिए कहा । कहा जाता है कि बिहारी आगरे चले गए । वहाँ उन्होंने दू-फारसी का थी अभ्यास किया आर प्रसिद्ध कबि अब्दरंहीम खानखाना से भी उनकी सेंट हुई । उनकी अशंखा में थी बिहारी ने कुछ दोहे कहे । कहा जाता है कि बिहारी की कबिता एर प्रसन्न होकर खानखाना साहब ने उन्हें बहुत छुछ पुरस्कार दिया | सं० १६७७४ में शाइजहाँ के किसी उत्सव सें सारत के बहुतन्से राजा- सहाराजा आमंत्रित हुए । बच्र समय बिडारी की काव्य-प्रतिभा को देखने का अवसर उन नरेशों को सिला । इनकी कविता पर प्रसघ होकर उन लोगों ने इनकी बाधिक चुत बाँध दी इघर सं १६४८ मैं नूरजहाँ की कुदिलनता के कारण बादशाह जहाँगीर और शाहजादा शादजहां के बीच कुछ सनमुटाव हो गया । इसलिए शाहजडाँ आगरे से हटकर रहने लगा । शाह्जादा के ऊपापात्र बिहारी की स्थिति भी उस समय डॉबाडोल हो गई आर वे इधर-उधर हृट-बढ़कर रहने लगे । वे नियमासुसार कुछ राजाओं के यहाँ चृत्ति लेने के लिए प्रतिबष ्याया-जाया करते थे। उनका कबरिचर सातामद सुमिरि केसव केसबर हों कथा भारत्थ की भाषा-छंद बनाइ || कुलपति मिश्र के पिता का नाम परशुराम मिश्र था | १. श्रीनरहरि नरनाह को दीनी बाद गदाइ । सुरुन-आागरें झागरें रहत आाइ सुख पाइ 1 ना० प्र० प० नवीन० सांग ८ अंक १ एवं ११८ | गंग गोंछ मोछें जसुन अधघरनु सरसुति-रागु । प्रगट खानखानानु कं कामद बदन प्रयाणु ॥--वह्दी प्ष्ठ ११८ । कुछ लोग इसे गंग कवि का रचा भी कहते हैं ।




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