नागरीप्रचारिणी पत्रिका भाग 4 | Nagripracharni Patrika Bhag 4

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Nagripracharni Patrika Bhag 4  by शिवदत्त शर्मा - Shivdutt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जामंश्वरदेच सौर वौर्तिकोमुदी श्द उससे तथा राजा से श्रंतिम विदा मांग शम्रुजय को प्रस्थान किया परतु घद्ाँ तक घदद पहुँच नहीं सका मार्ग दी में उसका शरीरात हो गया | ये घटनाएँ प्रंधकोप चस्तु पालय रित खुठतसंफीर्तन श्ादि अंधो में सिंसी हुई मिलती है । चदुघा जिन जिन ग्रंथों में वस्तुपाहा फा चर्त झंकित किया गया है उन सब में सोमेश्वर फा फुछ न कुछ चु्तांत मिला ही जाता है। जगट्ट चरित में भी सोमेश्वर का उल्लेप मिलता है । सोमेश्वरदेव का समय इस कवि का गुजरात के राजा भीमदेव .( दूसरे ) और उसके सामंत घोलका के चीसलदेव के राज्य में होना पाया जाता है । भीम- देव का राज्यकाल वि० सं० १२३५ से ३२६८ तक रददा और वो सल- देव ने गुजरात का राज्य भीमदेव ( दूसरे ) के उत्तराधिकारी नरिभुवनपाल से छीनकर वि० सं० १३०० के झास पास से लगाकर शु३१८ तक उनदिलवाड़ा ( पादण ) में राज्य किया । अतः सोमेश्वर का घि० सं० २२३५ और १३१८ के थीच में होना सिद्ध है । सोमेश्वर की संतान श्रादि का कुछ भी पता नद्दीं चलता । थास्तव में उसके ग्रंथ दी उसकी सच्ची संतान हैं जो उसके यश को स्थापित कर रहे हैं। कीर्तिकौमुदी का सारांश इस मदाकाब्य में & सर्ग हैं और सारे न्डोकों की संख्या ७२९ _ हैं परंतु ये सब के सब ग्छोक पेतिदासिक झंश के झमिधायक नहीं हैं .पर्योकि कवि को इनमें से बुत से तो मददाकाव्य के लक्षणों का निर्वाद करने के लिये भातश्काल सायंकाल ऋतु चंद्रोद्य क्रीड़ा झादि फे थर्णन करने तथा छुृंद्रचना में श्वपनी बुद्धि का बैभव दिखाने के लिये ही रचने पड़े । ऐसा होने पर भी जैसा कि निस्न- लिखित प्रत्येक सर्ग के सार से भतीत दोगा उसका पेतिहासिक झंश भी चड़े मददत्व का हैं । प्रथम सगे--नगर चणुन र्छोक ८६1 आीविप्छुमगवान्‌ शंकर




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