हिंदी उपन्यास सिद्धान्त और समीक्षा | Hindi Upanyas Sidhant Aur Samiksha
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.11 MB
कुल पष्ठ :
431
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के दे
नाटक
र--सारी अभिव्यक्ति प्रिया .
द्वारा करनी होती है ।
दे-नाटककार को जो कुछ
कहना है, राव कुछ दूसरों के माध्यम
से कहता है या कराता है। बह
स्वयं स्टेज पर नहीं उतर सकता ।
इ->कथा को समझने और
उसका सम्बन्ध जोड़ने में पाठकों
को विशेष कष्ट नही करना पड़ता ।
दर्थक देश-काल का ज्ञान *“रगमचीय-
कौशल' द्वारा कर लेता है ।
प--समय और स्वान वी सीमा
के अन्तर्गत अर्थात् केवल निर्धा-
'रित समय तक और रगमंच के पास
बैठकर ही नाटक वा आनन्द लिया
जा सकता है। ०
इ--नाटक में प्रमाव की
अस्वित उत्पन्न करना. आवश्यक
होता है और नाटककार का सारा
ध्यान इसी पर रहता है 1
७-ानावव में पाँच अर्थ-
श्रकृतियाँ मानी गई हैं ।
उपन्यास
२--वर्णनात्मवता वा आश्रय
लिया जाता है ।
३े--पहाँ करने को कुछ नहीं
होता 1 उपन्यासवार पाठकों के सामने
सोपे-सीधे अपनी वात कहने लगता है ।
पाठक उसके, उसके पात्रों के तय
घटनाओं मादि सबके आधार पर
अपना विचार बनाते हैं । पात्र एवं
दूसरे के चरित्र की आलोचना कर देतें
हैं और चाहे तो उपन्पासकार मी
सामने. आकर टौका-टिप्पणी वर्र
सकता है।
--पाठक के मस्तिप्क पर जोर
पढ़ता है। उसे पूर्व-कया को याद
रखना पड़ता है और आवश्यकता पढने
पर पीछे के पन्ने भी लौटने पड़ते हैं 1
उसका अधिक जायरुक और संवेदन
शील होना आवश्यक है ।
भ--उपन्यास. वा. आनन्द
रेलगाड़ी, बिस्तर और बगीचे में भी
लिया जा सकता है। समय और स्थान
का बोई प्रतिवन्ध नहीं रहता ।
६-उपन्यास जीवन का चित
होने के कारण अधिक यथार्थवादी
चित्र देता है। वास्तविकता उसहा
श्राण है ।
७--उपन्यास में वथा परिच्देशे
में विभक्त रहती है । इस विभाजन पैर
आधार पात्र, घटनाएँ, स्थान आर
होते हैं। इस विभाजन को इस काव्य के
सगों के समान मान सकते हैं ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...