हिंदी उपन्यास सिद्धान्त और समीक्षा | Hindi Upanyas Sidhant Aur Samiksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के दे नाटक र--सारी अभिव्यक्ति प्रिया . द्वारा करनी होती है । दे-नाटककार को जो कुछ कहना है, राव कुछ दूसरों के माध्यम से कहता है या कराता है। बह स्वयं स्टेज पर नहीं उतर सकता । इ->कथा को समझने और उसका सम्बन्ध जोड़ने में पाठकों को विशेष कष्ट नही करना पड़ता । दर्थक देश-काल का ज्ञान *“रगमचीय- कौशल' द्वारा कर लेता है । प--समय और स्वान वी सीमा के अन्तर्गत अर्थात्‌ केवल निर्धा- 'रित समय तक और रगमंच के पास बैठकर ही नाटक वा आनन्द लिया जा सकता है। ० इ--नाटक में प्रमाव की अस्वित उत्पन्न करना. आवश्यक होता है और नाटककार का सारा ध्यान इसी पर रहता है 1 ७-ानावव में पाँच अर्थ- श्रकृतियाँ मानी गई हैं । उपन्यास २--वर्णनात्मवता वा आश्रय लिया जाता है । ३े--पहाँ करने को कुछ नहीं होता 1 उपन्यासवार पाठकों के सामने सोपे-सीधे अपनी वात कहने लगता है । पाठक उसके, उसके पात्रों के तय घटनाओं मादि सबके आधार पर अपना विचार बनाते हैं । पात्र एवं दूसरे के चरित्र की आलोचना कर देतें हैं और चाहे तो उपन्पासकार मी सामने. आकर टौका-टिप्पणी वर्र सकता है। --पाठक के मस्तिप्क पर जोर पढ़ता है। उसे पूर्व-कया को याद रखना पड़ता है और आवश्यकता पढने पर पीछे के पन्‍ने भी लौटने पड़ते हैं 1 उसका अधिक जायरुक और संवेदन शील होना आवश्यक है । भ--उपन्यास. वा. आनन्द रेलगाड़ी, बिस्तर और बगीचे में भी लिया जा सकता है। समय और स्थान का बोई प्रतिवन्ध नहीं रहता । ६-उपन्यास जीवन का चित होने के कारण अधिक यथार्थवादी चित्र देता है। वास्तविकता उसहा श्राण है । ७--उपन्यास में वथा परिच्देशे में विभक्त रहती है । इस विभाजन पैर आधार पात्र, घटनाएँ, स्थान आर होते हैं। इस विभाजन को इस काव्य के सगों के समान मान सकते हैं ।




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