व्रण - बंधन अर्थात् पट्टियां | Vran Bandhan Va Pattiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१ शस्त्र चिकित्सालय में झधिक यांघी जाती हैं ।इस के झतिर्फि सप्तिन्दर बनाने के तरीफोँ था घण परिध्कार पर भी उचित धकाश डाला गया हे । भाषा सरल था खवोधघ है । सत्तर इाफरोन जिचौ ने पुस्तक परी उपयोरपता को छीर भी यढ़ां दिया है। जहां तहां खुध त के शोक भी दिये गये हैं । प्रेस में भेजने से पूर्न पुरुतवाः को हिन्दू विशविधालय काशी श्रायुनद्कि पर यूनानी तिच्दी कालिज देवली थी मददयानन्द्‌ ्यायुर्गदिक कालिज लाइौर झखिल भारतवर्पीय शायुर्गद चिद्या पीद कानपुर तथा सेवा समिति. घालयर सएंडल फे कार्यकर्ताश्रों के पास तथा शन्य महाजुमायो के पाल सेना गया । उन्होंने जो उचित विचार इस पर प्रगट किये थे भी पाठकों के दिग्द्शन के लिए साथ ही छुपया दिये गये है। इसके लिए मैं भारत रत्न देश नेता शी० पंडित मदनमोदम जी मानधीय डाफ्टर एम एस. घर्मा मैडीकल श्राफीसर डाक्टर पस पन झधगास मुख्याध्यक्त पं० खुरेन्द्र मोहन जी शाचर््य पें० किशोरोद्त्त जी शास्त्री राज दीद्य प० रामचन्द्र जी शर्मा रुकांउट कमिश्नर का अत्यन्त रेतश टू । यैय फिद्या के प्रेमि पे तथा फिद्यार्थियीं ने जिस तरद कि मेरी पहली पुस्तकों ( फेफर्ो की परोक्षा वा राग सूत्र परीक्ता पाशयात्य मताजुस्ार चुद्धिमती दाई था खद सुधार शास्त्र था चिसूचिका ) का झादर किया रि। यदि इसका भी पैसा दो झादर किया गया तो मैं झापना म्यत्त सफल समझूरँगा शौर




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