दयाराम सतसई | Dayaram Satsai

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Dayaram Satsai  by अम्वाशंकर नागर - Amvashankar Naagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्७ इयारास सतसई “संबत्‌ १८०० के लगभग दयाराम ने मीरां चरिय लिखा ।” दर (--प्ू० १५६, हिग्दी साहित्य का झ्रालोचनात्मक इतिहास ) हिन्दी साहित्य के इतिहासकारो में केवल ब्रजरत्नदास ही एक एसे इतिहास कार हैं जिन्होंने भ्पनें खडीबोली हिन्दी साहित्य के इतिहास में इस कवि का परिचय दिया है ! वे लिखते है “यह गुजराती कवि थे पर भारत स्रमण से इनकी दृष्टि सार्वदेशिक हो गई श्रीर उनके उदार राष्ट्रसापा हित्दी से काफी निकले, जो इन्हें भारतव्यापी भाषा ज्ञात हुई। इन्होंने दोहों, घरों के सिवा गेय पद भो लिखे, चिश्रक्नाब्य रचे तथा रसशास्त्र पर भी कविता की । ये श्रत्पस्त भावक भकत-कवि थे श्रीर गुजराती के कवियों में तो इनका स्थान बहुत जेंचा है । हिर्दी को सुष्य रचनाएं सतसेया, घस्तुवृस्ददोपिका तया धीमदुभागवत्‌ की श्रनुकर्माशाका है । (--पूर १४६, प्रयम संस्करण, खडी बोली हिन्दी साहित्य का इतिहास) सर्रसिह, प्रेमानन्द भरौर दयाराम गुजराती कविता के निंदेव हैं ! तर्रसिद्ध गुजराती के झादि कवि है, प्रेमानन्द के हाथी गुजराती कविता का पालन-सोपण हुमा है भौर दयाराम के हाथो गुर्जर-गिरा सज-सेंवर कर पूर्ण यौवन को प्राप्त हुई है। साराशत दयाराम गुजराती भाषा के प्रमुख तीन कवियों में से एक है । दयाराभ का मूलनाम दयार्शकर भट्ट था, किन्तु बड़े होकर वल्लभ संप्रदाय में दोचित होने पर उन्होंने श्रपना नाम दयाशकर से बदलकर दयाराम रख लिया। इनका जन्म संवत्‌ १८३३, मादरपद सुद ११, उपरात १९ : वामन दवादशी : रानिवार तदनुतार १६ झगस्द सन्‌ १७७७ को डमोई में हुमा 11 १: इस सबध में दयाराम कृत एक कवित्त दरष्टव्य है : सवतँ भ्रष्टादस तेतोस, शक सोलननामूं । भादों अमल पद तिथि द्वादशि जानिये ॥ सनिवार नक्षत्र श्रवन योग झतिगेज । रवि उदयगत घटी एकतालीस प्हूबानिये ॥। इुने राष्ट्र, तीजें गुरु शुफर उभय, चौथे युध । रवि पद्म, छूटे शनि, सप्तम कुज सानिये ॥ भप्टम केतु, नों ससि, यह दिधि के जन्माक्षर । इप्सदास दथाराम बाके उर ऑ्ानिये # (-झवुमभव मजरी)




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