भैरवोपदेश | Bhairvopdesh

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Bhairvopdesh by मोतीलाल जी महाराज - Motilal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ् शी मैरवोपदेश बाद को लव इस बात का पता चला तो मद्दाराज श्री मत दरि को इतना श्रायात पहुँचा कि वे श्पना राय्य; प्रिय ख्ी; घन श्रादि सब छोड़कर जन्नल में चले गये | मद्दारण्यमां.. पासियों. श्री. शुरूने, स॒मात्स्पेन्द्ध नारूपघारी रूरने। ४ जन्नल में उनकी श्री श्रप्टमैरवों में से एक श्रीमगवान् रद से; जिन्दोंने मगवाद्‌ मत्स्पेन्द्रवनाय के नाम से जन्म लिया था, मेंठ हुई । मद्दा मैरवे श्री रूरू दे घारी, जणी केन्द्र थी आवठता ने उगारी।. ६ चित्सत्व में से प्रकृति श्रपनी श्रावश्यक्तानुतार विसी एक महान, व्यक्ति का उत्थान करती है । उसके केन्द्रस्य व्यक्ति कदते हैं। भी मद्दाराज मत हरि ऐसे ही रेन्द्रस्थ व्यक्ति थे | उनके शीघ्र उत्यान के लिये ही मगवान्‌ थी रु ने जन्म लिया था। उन्दोंने उनकी उबार लिया | जई ने पढ्यों चरण मां राजियो ते, थयों त्यागि ने भीख नो भाजियों ते। ७ उनको देखते दो मद्दाराज मत 'इरि उनके चरया पर गिर पड़े शरीर सब ह्याग कर गुरू से मीग्व माँगते हुए कइने लगे प्रमू विश्व आ दुगखलु रूप देसूं, कहो शान्ति ने दुःख मां कयां परेसूं | गे बम ! यद सिधि सदाद दुख से मरा गुदा दे । इसमें शान्ति केले प्राप्त दो रुकती दे ह मय




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