आत्म साधना संग्रह | Aatma Sadhana Sangrah

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Aatma Sadhana Sangrah by मोतीलाल जी महाराज - Motilal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आत्म साधना संग्रह १३ र+प्शनिशपिएनिक्रित की चाप २ ' उसे सुन्दर बच्चा मिल गया सागरदत्त के पुत्र को शंका - कांक्षा ने फल से वंचित रकखा और जिनदत्त के पुत्र की श्रद्धा निःशंकता ने इच्छित फल दिया । इस उदाहरण से भगवान्‌ महाविर प्रभु, शिक्षा देते हुए फरमाते हैं कि -“एवामेव सम- णाउसो '....इत्यादि, जो निम्नेन्थ प्रवचन व पांच महात्रत,. छः जीवनिकाय आदि यें शंका, कक्षा, विचिकित्सा करेंगे, वे सागर- दत्त पुत्र की तरह इस भव और पर भव को बिगाड़कर दुःखी होंगे और सच्चे श्रद्धालु, शंका कांक्षादि रहित होंगे, वे इस भव और परभव में सुखी होंगे । जिसमें समझने की शवित है, वे तो जिन वचनों को समझ ' छेते हैं, विश्वास कर लेते हैं, कितु जिनकी बुद्धि की मन्दता हो, अथवा धामिक अध्ययन-मनन नहीं किया हो, उनको धर्मोप- . देशक आचार्यों, यथार्थ वक्‍ताओं और जिनागमों पर श्रद्धा रख- कर यथा शक्ति धर्मं आराघना करनी चाहिये । सूझते (भाँखों से देखने वाले ) मार्ग के जानकार व्यक्ति का आश्रय लेकर अनु- ” गमन करने वाले, अन्धे एवं मार्ग के अनजान भी इच्छित स्थान पर पहुँच कर सुखी होते हैं। अनेक भाषाओं का उच्च ज्ञान धराने वाले महोपाध्याय भी, चांदी, सोना, हीरे, मोती के खरे खोटे की परीक्षा, अपने से कम पढ़े हुये, जौहरी पद विश्वास.रख कर करवाते हैं। जंगल में रास्ता भूल जाने पर अनपढ़ असभ्य एवं महामूर्ख माने जाने वाले, जंगली भील पर विश्वास. रखकर उसके बताये हुए मार्ग .से इच्छित स्थान




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