स्वर्ग का विमान | Swarg Ka Viman

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Swarg Ka Viman by अमृतलाल सुन्दर जी - Amritalal Sundar Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ पिपयाठुकमणिका । न विपय. पूर्ठांक १९३० यह संसार एक यात्रा है हमारा घर दो इंश्वरकें दूर बारें है और दालिं घरमें हैं इससे घर पहुँचमेंकी उतावली क्रो कक कि न्म्स असम १३७ २२९ परमेश्वरके दरवारमें शुम्हारी दिदत्ता नहीं मुठ जायगी वहां तो तुम्हारी भक्तिद्दी पूँछी जायगी १३८ ९९२ भाइयों भविष्यतके संकटोको याद करके इुश्ख़का चोझा मत वढाओ भब्यभ बम ०० रु ४० २२३ लड़केके भी लंडकॉकी चिंता करके बा क्यों दुश्सी होते हो ? प्रश्ुकी इच्छाके अधीन होजाओ तो न दुश्ख अपनेही आपही कम हो जायँगें.. पा १२४ डुम्खसे दुःख़ित मत दो समुद्र उतार और चढावकी तरब दुःख और सुख मी जितनी तेजीसे आते हैं उतनीदी तेंजीसे चले भी जाते हैं... .. ...... ० रहे २९५ जूतेंम कंकर भरजानेसेददी जब दम आगे नहीं चछ सकते तब हुदयमें पाप भरे रह नेसे इःवरीय मार्ग केसे चढा जा सकता है. न... .... २४८ २९६ मरे पीछे हमारे हारे सोती और भोगविलास काम नहीं अबेंगे केवरू धर्मदी तब काम जावेगा... .... १४ श२७ इम समुद्रका माग॑॑ नहीं जानते त्तरत मी कप्तानपर विश्वास करके जद्दाजमें सवार होते हैं वेसेदी ईश्वर- पर विश्वास करके मक्तिरूपी जद्दाजमें बैठ जाओ ८... १४७ १९८ जैसे तिल तेरु दे पररहु दवानेसे निकठता दे मैसेदी हमारे हुद्यमें सक्ति है सो मगवत्तेवा करनेसे बढती हैं. १४. १२९ बकीलकों अपना सुकदमा सोंप देते दो उससे तो इंश्वर अनंतगुना समर्थ दे तव इश्वरपरददी क्यों + नहीं छोड़देते नम भन न रडं न




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