स्वर्ग का विमान | Swarg Ka Viman

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Swarg Ka Viman by अमृतलाल सुन्दर जी - Amritalal Sundar Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिपयानुक्रांणिका । ४.५4 दिपय, पृष्ठा, १०९ विना टामके घोडेपर बंठाहुआ छडका गे गिर- यया वेसेही हमभी जो अपने मनपर्‌ विश्वासकी लगाम न लगायेंगे तो नरकहीम गिरेंगे. -« ~ ११० है तो असंभव तवभी शायद चमचेसे समुद्र खाली करदिया जा सके, परंतु मनुष्यसे प्रशुका पार कभी नहीं पाया जासकता इ गः এ #१११ संसारकी हलकीसे हलकी वस्तुकाही हमकी पूरा र ज्ञान नहीं हौसकता, तव इश्वरका पूरा ९ ज्ञान क्योंकर होसकताहै. ~~ ^ ११२ जो यहां ऊँचे हांगे वे इखरके आगे नीचे गिरमे- जो यहां नपैगा वह ईश्रके वहां मान पावेगा ~ ११२ परमेश्वरने हमारे मौतके बारंटपर ओर्‌ हमको नर- कमं डालनेके फेसलेपर अभी दस्तखत नहीं किये- इतनेहीम हमकी पाप छोड देना चाहिये. ~“ ११४ भक्तोंका आनंद उनके हृदयहीम भरा रहता है, उस आनंदका इंढनेके लिये उन्हें वाहर नहीं जाना पडता« ११५ अधिकार विना अच्छी वस्तुएँभी पसंद नदी आती इसमे इश्वरीय आनद ठेनेकी योग्यता प्राप्त करों ««« १९६ एक धमेके उपदेश करनेवालेने कहा कि प्रश्ुके नामका वर तौ देखो कि मुश्नजैसा पापीभी भक्तिमान्‌ € का, होकर शुरू बन सकता है 1 ००० ००७ ३१७ ट्रेन छूटजानेवाद र्टेशनपर्‌ रोना किस कामका मरेकं पी रोनाभी निष्फर्टी हे कि र १२१ १२३ १२४ १२६ १२७ १२९. १३१ १३३ २१८ शत्य क्या हे साधु कते दं कि, सत्यु ईश्वरक कया ६. १३५. 2१५० भक्तिका मार्ग खरद्रा हे सी वाचां अरकं पडनेकं लिये नहीं है परंतु जल्दी पहुँचनेके लिये है ने १३६




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