इन्द्रशक्ति का विकास | Indrashakti Ka Vikas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इंदे और सूर्यको ममाव । (९) उपांय हैं, परंते यंदं इस छोंके आरर्मदका दी विचार करेंना दै । इसंडिये इंद्रछोक- इद्तर्व ?' का निश्चय फरते हुए यदद पंदां थंताया है, कि थे सूइम संभीद भयंवा जीवनपूर्ण विधुत्ततव है, शौर चदद सरेप्र स्पापफ दै ( संनुष्यके जीवनेंके लिये सूदमसे सूदमं सत्वॉकी भावर्यकता अधिका- चिक दे । भन्न, जरं कर घायु ये तीन पदाय मानवी जीवनफो सद्दायक हैं। भन्न स्थूल दै, उससे जछ सूदम थौर उससे अति सूदम वायु है, इसीलिये अससे जल भर जठसे थायुकी भावश्यकता मसुप्यके छिये अत्यधिक है। असम न मिलनेपर मजुप्य सीन मासतक प्राणधारण फंर सकता है; जऊठ न मिलनेपर मेजुप्य केवकठ सप्ताइ तक मुश्किछसे आणधघारण कर सकता है, तथा प्राणणायु न मिठनेपर योडसे क्षणोंमें सलुप्य मर सकता दै। इससे स्पष्ट होता है कि, स्थूऊ तल्व्वडी अपेक्षा सूकष्म सर्वकी लावश्यकता मजुष्यके लिये कितनी अधिक दे ]! इंदतसवके साथे जीवनका स्व रहनेफे कारण इसकी आवश्यकता सबसे लघिक है । यद यात पूर्वोवत युक्तिसे दी सिद्ध हो सकती दे। इस छिये इस विपय्म अधिक छिखनेडी भावइयकता नहीं है । जीवनके लिये जिसकी अत्यधिक भावइयकता दे, उस तसवका अपने अंदर विकास करनेसे भपना जीवन सुखमय भोर आनंदपूण हो सकता है, यदद यात यददां स्पष्ट दो जाती दे। इसीछिये इंद्रशक्तिका विकास करनेकी आवदयकता दे । (१० ) इंद्र और सू्यका प्रभाव । यदा सुयेममुं दिवि शुक ज्योतिरधारयः । आदित्त विश्वा सुवनानि येमिरे || चर० ८19 २1३६० “ ( यदा ) जिस समय ( दिवि ) चुलोक्म ( भर्मु सूर्य के इस सूयंके प्रति ( झुन्द ज्योति ) झुद्ध मकाश तुमने ( जधघारयः ) घारण सिया; द्छे




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